मिथिला अपनी सभ्यता, संस्कृति एवं पर्व-त्योहारों की परंपराओं को लेकर प्रसिद्ध है. वैदिक काल से ही मिथिलांचल में पर्व-त्योहारों की अनुपम परंपरा रही है. ऐसे ही त्योहारों में से एक है मिथिलांचल का प्रसिद्ध पर्व चौठ चंद्र. इसे स्थानीय मैथिली भाषा में चौरचन कहा जाता है.भाद्र शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को इस पर्व को विधि-विधान के साथ मनाया जाता है. इसबार यह पर्व 22 अगस्त, शनिवार को मनाया जायेगा. मान्यता है कि चौठ चंद्र व्रत की उपासना करने से मनोकामनाओं की प्राप्ति होती है. कई लोगों द्वारा कहा जाता है कि दरभंगा महाराज द्वारा इस पर्व काे प्रारंभ किया गया था.

चौठ चंद्र पूजा को महिलाएं करती हैं. महिलाएं सुबह से ही गाय के गोबर से लीपकर आंगन एवं घरों को शुद्ध बनाते हैं. कच्चे चावल को पीसकर पिठार बनाती हैं, जिससे घर के आंगन या छत पर पूजा स्थल को आकर्षक अहिपन यानी रंगोली से सजाया जाता है. चंद्रदेव को अर्घ देने के लिए दिन भर एक से बढ़कर एक मीठे पकवान बनाये जाते हैं. इस पर्व में दही व केले का खास महत्व है. संध्या की बेला में पूजा स्थल पर पूजा सामग्रियों को सजाकर व्रती महिलायें पारंपरिक तरीके से विधि पूर्वक पूजा करतीं हैं. पूजा के बाद घर व्रती महिलायें चंद्रदेव को अर्घ देती हैं व सबसे पहले हाथ में फल लेकर चंद्रदेव का दर्शन करती हैं. इसके बाद परिवार के सभी सदस्य हाथ में केला, दही या अन्य फल लेकर चंद्रदेव का दर्शन करते हैं. इसके बाद सभी प्रसाद ग्रहण करते हैं. बताया जाता है कि यह पर्व मिथ्या कलंक से बचने के लिए मनाया जाता है.

क्यों मनाते है चौथ चंद्र

माना जाता है कि इस दिन चांद को शाप दिया गया था. इस कारण इस दिन चांद को देखने से कलंक लगने का भय होता है. परंपरा से यह कहानी प्रचलित है कि गणेश को देखकर चांद ने अपनी सुंदरता पर घमंड करते हुए उनका मजाक उड़ाया. इस पर गणेश ने क्रोधित होकर उन्हें यह शाप दिया कि चांद को देखने से लोगों को समाज से कलंकित होना पड़ेगा. इस शाप से मलित होकर चांद खुद को छोटा महसूस करने लगा.

शाप से मुक्ति पाने के लिए चांद ने भाद्र मास, जिसे भादो कहते हैं की चतुर्थी तिथि को गणेश पूजा की. तब जाकर गणेश जी ने कहा, “जो आज की तिथि में चांद के पूजा के साथ मेरी पूजा करेगा, उसको कलंक नहीं लगेगा.” तब से यह प्रथा प्रचलित है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *