शुक्रवार को पूरा देश में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) की धूम रहेगी। लेकिन बिहार(Bihar) में गणेश चतुर्थी के साथ साथ मिथिला के लोग चौठचंद्र ( Chauthichand) भी मनाएंगे। मिथाला में मनाया जाने वाला चौठचंद्र ऐसा त्योहार जिसमें चांद की पूजा बड़े धूमधाम से की जाती है। मिथिाल के लोग चौठचंद्र को चौरचन भी कहते हैं। बिहार के मिथिला के अधिकांश त्योहारों का नाता प्रकृति से जुड़ा होता है। छठ में जहां उगते और डूबते सर्य की उपासना की जाती है वहां चौठचंद्र में मिथिला के लोग चांद की पूजा करते हैं।

गणेश चतुर्थी की दिन मनाया जाता है चौठचंद

वैसे तो मिथिला के अधिकांश पर्व त्योहार किसी ने किसी रुप से प्रकृति से जुड़े होते हैं। चौठचंद्र भी प्रकृति से जुड़ा हुआ ही पर्व है। मिथिला के लोग इस पर्व को गणेश चतुर्थी के दिन मनाते हैं। इस पर्व में चांद की पूजा विधि विधान से की जाती है।

महिलाएं करती हैं व्रत

चौठचंद्र के दिन मिथिला की महिलाएं पूरे दिन व्रत करती हैं। इसके साथ ही शाम को भगवान गणेश की पूजा के साथ चांद की विधि विधान से पूजा कर अपना व्रत तोड़ती हैं। चौठचंद्र पर्व के दौरान व्रति महिलाएं सूर्य के डूबने और चंद्रमा दिखने के दौरान कच्चे चावल को पीसकर रंगोली भी बनाती हैं। जिससे मिथिला की भाषा में अरिपन कहा जाता है। चौठचंद्र पर्व के दौरान घरों में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं और भगवान को चढ़ाया जाता है।

क्या है पर्व के पीछे की कहानी

ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा को भगवान गणेश ने शाप दिया था। इसको लेकर ये कहानी प्रचलित है कि चांद को अपनी सुंदरता पर घमंड था और चांद ने गणेश का उपहास उड़ाया था। इससे क्रोधित होकर गणेश ने चांद को शाप दिया था कि जो भी इस दिन चांद को देखेगा उसे कलंक लगने की डर होगा। इस शाप से मुक्ति पाने के लिए भादो मास के चतुर्थी तिथि के दिन चांद ने भगवान गणेश की पूजा अर्चना की। चांद को अपनी गलती का अहसास होने के बाद भगवान गणेश ने कहा कि इस दिन चांद की पूजा के साथ जो मेरी पूजा करेगा उसे कलंक का भागी नहीं बनना पड़ेगा। इस मान्यता के बाद इस पर्व को खास कर बिहार के मिथिला के लोग बड़े विधि विधान के साथ मनाते हैं।

Source: Dainik Jagran

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