मुजफ्फरपुर, रामदयालु सिंह महाविद्यालय के इतिहास विभाग द्वारा “गांधी क्यों नहीं मरते” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता डॉ कल्पना शास्त्री लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि गांधी को खत्म करना आसान नहीं क्योंकि वह भारत के अंतिम व्यक्ति की उम्मीद है। कमजोर से कमजोर व्यक्ति भी गांधी के सत्य अहिंसा एवं सत्याग्रह के माध्यम से शक्तिशाली बन जाता है।

गांधी भारतीय सामाजिक संरचना के अंतर्गत सर्वोच्चता के सिद्धांत को नकारते हुए महिलाओं एवं दलितों के अंदर समानता के भाव को उभारने में महती भूमिका अदा की है । उन्होंने आगे कहा कि हिंसा नामक अस्त्र का प्रयोग कायर एवं डरपोक लोग दूसरे को डराने के लिए करते हैं जबकि अंदर से मजबूत व्यक्ति सत्य, अहिंसा एवं सत्याग्रह का प्रयोग कर बड़ी से बड़ी सत्ता को झुकने के लिए मजबूर कर देता है।

विशिष्ट वक्ता एवं अतिथि कुमार शुभमूर्ति, पूर्व अध्यक्ष, भूदान यज्ञ समिति व गांधीवादी चिंतक ने कहा कि गांधी की मृत्यु नहीं बल्कि हत्या हुई थी। हत्या का कारण भारत विभाजन और पाकिस्तान को 55 लाख रुपया देने के तर्क से दिग्भ्रमित करने की कोशिश की जाती है, लेकिन गांधी को मारने की कोशिश तो 1934 से ही हो रही थी। उस समय तो भारत विभाजन का प्रश्न भी नहीं था। समतामूलक समाज की गांधी की कल्पना इस महाराष्ट्र के हत्यारों समूह को सहन नहीं हो पा रहा था।

विषय प्रवेश कराते हुए डॉ संजय सुमन ने कहा कि सामर्थ्य का नाम ही महात्मा गांधी है। एक सोची-समझी रणनीति के तहत यह भ्रम फैलाया गया कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है। इसी तरह हरिजन यात्रा के क्रम में उन्होंने कहा था कि सवर्णों ने हरिजन पर जितना अत्याचार एवं अन्याय किया है, उसके बदले हरिचंद मेरे गाल पर एक थप्पड़ मार दे तो मैं दूसरा गाल सामने कर दूंगा। इस वाक्य का संदर्भ यही था कि बताने वालों ने संदर्भ गायब कर दिया और प्रचारित कर दिया।

प्राचार्य डॉ अमिता शर्मा ने अपने अध्यक्षीय भाषण के द्वारा संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि गांधी के शरीर का अंत हुआ है विचार का नहीं। गांधी कैसे मर सकते हैं? कोविड के समय गांधी के स्वदेशी और आत्मनिर्भर ग्राम की याद सभी भारतीयों को आ रही थी।

विभागाध्यक्ष प्रो कहकशां ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि गांधी ने जिन मूल्यों को अपने आचरण में आत्मसात किया है, सदैव उनके जीवंतता को दर्शाती रहेगी।

मंच संचालन डॉ एम एन रिजवी एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ मनीष कुमार शर्मा ने किया। शाहिद कमाल, श्री लक्ष्णदेव प्रसाद सिंह, प्रो अवधेश कुमार, श्री सुरेंद्र प्रसाद, प्रो केके झा, प्रो श्याम बाबू शर्मा, डॉ राकेश कुमार, प्रो इंदिरा कुमारी, प्रो लक्ष्मी साह, डॉ अजमत अली, डॉ अनुपम कुमार, डॉ ललित किशोर, डॉ आयशा जमाल, डॉ सुमन लता, डॉ रजनीकांत, डॉ उपेंद्र, डॉ ममता, डॉ शशि आदि शिक्षकों की सहभागिता ने संगोष्ठी को सफल बनाने में महती भूमिका अदा की।
छात्रों में साक्षी, विकास, शिल्पी, आदित्य, पूजा, राजू, नीलम आदि ने प्रश्न कर संगोष्ठी में जान डाल दी।

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