बिहार की राजनीति में पिछले 24 घंटे से उठापटक की चर्चाएं तेज हो गई हैं. कहा जा रहा है कि एनडीए के सहयोगी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी नेतृत्व से नाराज हैं. सूत्रों के मुताबिक, नीतीश की नजदीकियां लालू प्रसाद की पार्टी राजद से एक बार फिर बढ़ गई हैं. ऐसे में राजनीतिक तौर पर आने वाले कुछ घंटे बिहार की राजनीति को लेकर बेहद खास माने जा रहे हैं. हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं है, जब नीतीश कुमार पाला बदलने जा रहे हों, उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में अब तक चार बार बदलाव किया और सत्ता की जिम्मेदारी संभाली.
दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं हुए. नीतीश के दिल्ली ना जाने के फैसले ने इन अटकलों को और हवा दे दी है कि एनडीए के दो सहयोगी दलों में टूट हो सकती है. पिछले 20 दिन (17 जुलाई के बाद) की ही बात करें तो ये चौथी ऐसी बैठक और कार्यक्रम था, जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री सहयोगी दल भाजपा के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच दूरी बनाते देखे गए.
मीडिया रिपोटर्स के अनुसार, बिहार में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन टूटने की कगार पर है. चूंकि नीतीश की पार्टी राज्य में सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए राजद, कांग्रेस और वाम मोर्चे के साथ गठजोड़ कर रही है. हालांकि अगर ऐसा होता है तो इतिहास 5 साल बाद फिर से खुद को दोहराएगा. जदयू 2017 के बाद लालू यादव की पार्टी से बिगड़े संबंधों को बनाने के लिए फिर हाथ मिलाएगा और लालू यादव के साथ ये उनका तीसरा कार्यकाल होगा.
4 दशक से ज्यादा के राजनीतिक करियर में नीतीश कुमार ने चार बार अपनी राजनीतिक निष्ठा बदली है. आइए एक नजर डालते हैं उस पर….
जब वह जनता दल से अलग हुए
नीतीश मार्च 1990 में बिहार की राजनीति में तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने तत्कालीन जनता दल में अपने वरिष्ठ लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनने में मदद की. उन दिनों नीतीश लालू को अपना ‘बड़े भाई’ कहते थे. नीतीश ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1985 में नालंदा जिले की हरनौत सीट से जीता था. चार साल बाद वे 1989 में बाढ़ इलाके से जनता दल के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए. 1991 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने फिर से बाढ़ इलाके से जीत हासिल की. हालांकि, 1994 में नीतीश ही थे, जिन्होंने बिहार में जनता दल के लालू के खिलाफ बगावत की. उन्होंने अनुभवी समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई. बाद में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व वाली समता पार्टी और शरद यादव के नेतृत्व वाली जनता दल (यूनाइटेड) का 2003 में विलय हो गया.
जब एनडीए से बाहर निकले
16 जून 2013 को भाजपा ने नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया तो नीतीश कुमार नाराज हो गए और उन्होंने भाजपा के साथ अपने 17 साल पुराने गठबंधन को तोड़ दिया. मोदी का नाम लिए बगैर नीतीश कुमार ने कहा- ‘भाजपा नए दौर से गुजर रही है. जब तक बिहार गठबंधन में बाहरी हस्तक्षेप नहीं था, तब तक यह सुचारू रूप से चला. बाहरी हस्तक्षेप होने पर समस्याएं शुरू हुईं. बता दें कि जदयू और बीजेपी के बीच पहली बार 1998 में गठबंधन हुआ था.
जब राजद से मिलाया हाथ, महागठबंधन के साथ बनाई सरकार
2015 के बिहार विधानसभा चुनावों ने बिहार की राजनीति में एक और बदलाव लाया. नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ ‘महागठबंधन’ बनाया. विधानसभा चुनाव में जदयू और राजद ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा और 80 सीटों पर शानदार जीत हासिल की. जदयू ने 71 सीटों पर कब्जा किया. नीतीश कुमार महागठबंधन के नेता चुने गए और पांचवीं बार सीएम के रूप में शपथ ली.
जब जदयू ने छोड़ा महागठबंधन
26 जुलाई 2017 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. तब उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. तेजस्वी से इस्तीफे की मांग तेज हुई. नीतीश पर दबाव बढ़ा तो उन्होंने खुद सरकार से हटने का निर्णय लिया.
इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार ने कहा- ‘मैंने गठबंधन को बचाने की पूरी कोशिश की. मैंने किसी का इस्तीफा नहीं मांगा. तेजस्वी मुझसे मिले. मैंने केवल उनके खिलाफ आरोपों पर स्पष्टीकरण मांगा. ऐसे माहौल में काम करना मुश्किल हो गया था. ये मेरी अंतरआत्मा की आवाज है. मैंने राहुल जी (गांधी) से बात की. मैं गठबंधन को बचाना चाहता था. सरकार के अंदर किसी के बारे में सवाल हैं. मैं उसका जवाब नहीं दे सका. इस सरकार को चलाने का कोई मतलब नहीं था. ये मेरे स्वभाव और मेरे काम करने के तरीके के खिलाफ है.
बाद में जदयू ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की मदद से सरकार बनाई. 27 जुलाई को नीतीश कुमार ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
इनपुट : आज तक
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