मुजफ्फरपुर, 22 सितंबर, 2023, राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक समरसता हेतु स्वराज्य के प्रणेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा शुरू किये गये गणपति उत्सव के पावन अवसर पर रामदयालु सिंह कॉलेज के प्रांगण में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली द्वारा 19-28 सितंबर तक आयोजित किये जा रहे स्वराज्य-पर्व में भारतीय विद्या, साहित्य एवं संस्कृति समागम सह राष्ट्रीय पुस्तक मेला के अंतर्गत चौथे दिन परिचर्चा के दूसरे सत्र में आज ‘भारत और नेपाल के बीच अन्योन्याश्रित संबंध ‘ विषय पर भारत और नेपाल के कई विद्वान वक्ताओं ने अपने विचार रखे।

मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रसिद्ध चिकित्सक और भारत नेपाल भ्रातृ मंच के संस्थापक डॉ. नवल किशोर सिंह ने कहा कि नेपाल और भारत दो शब्द नहीं हैं, इन्हें दो शब्द बनाया गया है। आज इन दो शब्दों को मिलाने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच युगों युगों से जो संबंध था, उसमें 1950 की संधि ने दूरियां पैदा कीं, जो समय के साथ बढ़ती गयी हैं। उच्च स्तर पर भारत के लोग नेपाल के लोगों के प्रति काफी संवेदनशील हैं, और इस संवेदनशीलता का व्यापक प्रसार ज़रूरी है। 1950 की संधि की धारा 7 में नेपाल और भारत दोनों देशों के नागरिकों को समान अधिकार और सुविधाएं प्रदान करने का वचन दिया गया है, लेकिन आज तक वह धरात पर नहीं उतरा। वास्तविकता बिल्कुल भिन्न है। इस संधि की धारा 7 का पालन सुनिश्चित करने के बाद ही भारत और नेपाल के बीच संबंधों में पहले जैसी मज़बूती आयेगी।

मधेश प्रदेश संघ, नेपाल के अटॉर्नी जनरल बिरेन्द्र ठाकुर ने विषय पर बोलते हुए कहा कि नेपाल और भारत के अन्योन्याश्रित संबंध को हमारी पुरानी पीढ़ियों ने अक्षुण्ण रखा था। हम गर्व से कहते थे कि अगर भारत में भगवान राम हुए तो हमारे यहां भी माता जानकी हुईं। यह प्रगाढ़ संबंध राजनीतिक द्वंद्वों का शिकार न हो, इसके लिये हमे गंभीर प्रयास करने होंगे। देश भले ही अलग हों, पर हमारा भूगोल, संस्कृति, आचार-विचार सब एक जैसे ही हैं। हमारे इस संबंध के बीच किसी सीमा, सेना और पुलिस की ज़रूरत नहीं होनी चाहिये।

परिसंवाद को संबोधित करते हुए वरिष्ठ समाजवादी नेता डॉ. हरेन्द्र कुमार ने कहा कि भारत और नेपाल के बीच जिस रोटी-बेटी के संबंध की बात होती है, वह एक सच्चाई है। वैशाली और जनकपुर का सदियों से अटूट संबंध रहा है। इस संबंध को कोई भी राजनीति समाप्त नहीं कर सकती। राजशाही के ख़िलाफ़ नेपाली क्रांति में मुजफ्फरपुर के साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी और पूर्णिया के कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने भाग लिया था। जब नेपाल के मधेशियों ने आंदोलन किया था, तब रघुवंश प्रसाद सिंह ने उनके मुद्दों का समर्थन किया था। नेपाल मे जब भूकंप की आपदा आई, तो भारत सरकार ने आगे बढ़ कर सहायता की। आज भारत और नेपाल के बीच दूरियां पैदा करने वालों को हतोत्साहित करने की ज़रूरत है।

परिचर्चा में नागरिक समाज मंच, जनकपुर के मुरली मनोहर सिंह, इंडो नेपाल चिकित्सक संघ के उपाध्यक्ष डॉ. पी.के. ठाकुर और दोनों देशों के कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किये। परिचर्चा में वरिष्ठ कवि संजय पंकज ने विषय प्रवर्तन किया और मंच का संचालन अमर बाबू ने किया।

गणपति-उत्सव के चौथे दिन सांस्कृतिक संध्या के अंतर्गत राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का भव्य आयोजन किया जा रहा है, जिसमें विनीत चौहान, स्वयं श्रीवास्तव और साक्षी तिवारी जैसे सुप्रसिद्ध कवियों के साथ-साथ मुजफ्फरपुर से रविन्द्र उपाध्याय, अनिल कुमार सिंह, ब्रजभूषण मिश्र, कुमार विरल, संजय पंकज और विजय शंकर मिश्र जैसे जाने-माने कवि अपनी कविताओं का पाठ करेंगे।

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