उत्तर प्रदेश के भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ काफी जद्दोजहद और बहस के बाद, आखिरकार अपने ही आध्यात्मिक घर यानी गोरखपुर से विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.
योगी ने गोरखपुर लोकसभा सीट से भले ही लगातार पांच बार जीत हासिल की हो, लेकिन अपने राजनीतिक जीवन में उन्हें कभी किसी विधानसभा सीट से अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने का मौका नहीं मिला.
ये भी कह सकते हैं कि शायद अब तक ऐसा करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ी. लेकिन अब विधानसभा के लिए चुनाव लड़ना उनकी राजनीतिक मजबूरी है. 2017 में, जब उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया, तो उन्होंने अपनी संसदीय सीट से इस्तीफा देने के बाद, राज्य विधान परिषद के सदस्य के रूप में शुरुआत की.
इस बार, जब वह वाकई में मुख्यमंत्री के तौर पर वापसी करने की कोशिश कर रहे हैं, तो पूरा एक हफ्ता उनके सीट चुनने की अटकलों में बीत गया. पहले कहा जा रहा था कि वह मथुरा से चुनाव लड़ेंगे, जहां स्थानीय साधुओं में उनकी बहुत डिमांड थी. वास्तव में, जिस तरह से सारा फोकस विवादास्पद कृष्ण जन्मभूमि पर था, उससे यही लग रहा था कि मथुरा से योगी आदित्यनाथ को उतारा जाना, कृष्ण जन्मभूमि को वापस पाने की मांग को और तेज करेगा, जिसपर फिलहाल ईदगाह मस्जिद बनी हुई है.
यह सवाल यूपी के राजनीतिक हलकों में पिछले दिसंबर से ही घूमने लगा था, जब हिंदू महासभा ने कृष्ण जन्मभूमि मंदिर क्षेत्र के परिसर में स्थित ईदगाह मस्जिद तक मार्च करने की घोषणा की थी. हिंदू महासभा ने मस्जिद के अंदर भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित करने की धमकी दी थी. कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के प्रतीक रहे मंदिर के विध्वंस के बाद, मुगल सम्राट औरंगजेब ने यह मस्जिद बनवाई थी.
केशव प्रसाद मौर्य के ट्वीट से मथुरा पर शुरू हुई चर्चा
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के अचानक किए गए एक ट्वीट ने साफ़ कर दिया था कि यूपी में होने वाले विधानसभा चुनावों की फ़िज़ा कैसी होगी. मौर्या ने अपने ट्वीट में कहा था, ‘अयोध्या, काशी भव्य निर्माण जारी है, अब मथुरा की तैयारी है.’ इस ट्वीट के बाद, जय श्री राम, जय शिव-शंभू और जय श्री राधे-कृष्ण के नारे लगने शुरू हो गए थे. ट्वीट में साफ़ तौर पर वाराणसी में नए भव्य काशी विश्वनाथ गलियारे के निर्माण और अयोध्या में नए भव्य राम मंदिर के निर्माण का ज़िक्र किया गया था. हालांकि, पार्टी ने कुछ समय के लिए मथुरा की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है.
मथुरा से समर्थन मिलने की संभावना नहीं थी
श्रीकृष्ण पर शोध करने वाले वरिष्ठ पत्रकार विनीत नारायण ने कहा कि पार्टी को मथुरा की योजना को कुछ समय के लिए आगे बढ़ाना पड़ा. ऐसा इसलिए, क्योंकि कृष्ण की भूमि से इस योजना के लिए असंतोष की आवाजें उठने लगी थीं. उनका तर्क था, ‘योगी आदित्यनाथ को मथुरा के धार्मिक परिदृश्य में अयोध्या और काशी की तरह समर्थन मिलने की संभावना नहीं थी. क्योंकि, योगी जिस ‘नाथ’ संप्रदाय से जुड़ हुए हैं, मथुरा में उसका कोई प्रभाव नहीं है.’
‘अयोध्या’ को स्वाभाविक तौर पर योगी की अगली पसंद माना जा रहा था. माना जाता है कि मंदिर के निर्माण में योगी की सक्रियता के चलते, वे वहां से चुनाव लड़ सकते हैं. अयोध्या के स्थानीय साधुओं के विभिन्न समूहों ने योगी का जबरदस्त समर्थन किया, फिर भी किसी कारण से पार्टी आलाकमान ने अयोध्या के लिए उनके नाम विचार नहीं किया और उन्हें गोरखपुर से ही चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया. दरअसल इसकी एक वजह गोरखनाथ मंदिर की सीट भी है. योगी कई दशकों से गोरखनाथ पीठ के प्रमुख हैं. समझा जाता है पार्टी आलाकमान ने गोरखपुर विधानसभा क्षेत्र को उनके लिए सबसे सुरक्षित सीट माना है.
हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में प्रोफ़ाइल पर ब्रेक
निश्चित तौर पर, आलाकमान के फैसले ने हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में अपनी प्रोफ़ाइल को बड़ा करने की योगी की उम्मीदों को धराशायी कर दिया है. अयोध्या से उम्मीदवारी उनके प्रोफ़ाइल को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती थी. इससे उन्हें खुद को, अयोध्या के वास्तुकार के तौर पर पेश करने का मौका मिल सकता था.
सुप्रीम कोर्ट से फैसले के बाद, मोदी ने न केवल अयोध्या को नया रूप देने के लिए बड़े पैमाने पर योजना बनाई है. यहां बताना भी ज़रूरी है कि अयोध्या में बहुप्रचारित ‘भूमि पूजन’ के दिन, सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी ही अयोध्या का चेहरा थे. योगी आदित्यनाथ उस दिन करीब-करीब कैमरे के फ्रेम से बाहर थे, यह वही दिन था जब इस इवेंट को दुनिया भर में व्यापक रूप से दिखाया गया था. अयोध्या की सड़कों पर ‘जय श्री राम’ के विजयी नारे गूंज रहे थे, जहां राम मंदिर के निर्माण का श्रेय अकेले प्रधान मंत्री को दिया गया था. शायद ही कोई होगा जिसने इस बहुप्रतीक्षित फैसले का श्रेय देश की शीर्ष अदालत को दिया हो.
गोरखपुर को लेकर आश्वस्त हैं योगी
कहा जाता है कि योगी आश्वस्त थे कि गोरखपुर उनकी ‘कर्मभूमि’ रही है, इसलिए उनके लिए वहीं से चुनाव लड़ना सही होगा. जबकि, यह भी सच है कि इसी क्षेत्र में पार्टी में कई दलबदल दिखाई दिए हैं. हालांकि, यह भी तर्क दिया जा रहा था कि योगी के लिए यह एक चुनौती होगी कि वह अपने इस दावे को साबित करें कि उस क्षेत्र में भाजपा की लोकप्रियता पर दलबदल का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. भले ही गोरखपुर योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे अच्छा दांव हो, फिर भी उन्हें यह साबित करना होगा कि दलबदल के कारण पार्टी ने कुछ भी नहीं खोया है. जबकि, वास्तविकता यह है कि इस दलबदल ने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पार्टी को हिलाकर रख दिया है.
इनपुट- शरत प्रधान (आज तक)