राजद के ए टू जेड की पार्टी बनने पर बड़ा विवाद है। सवर्णों को आज भी लालू जी की भूरा बाल साफ करो वाली उक्ति याद है। भूरा बाल अथवा भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला व कायस्थ के निर्मूलन का लालू जी का आह्वान याद है तो अभिवंचित समाज को सवर्णों का व्यवहार आज भी याद है, ऐसे में संकट गहरा सकता है। पराया के चक्कर में अपने भी बिछुड़ सकते हैं और पराया तो पराया ठहरा जिसका भरोसा केवल दिल बहलाने के लिए ही होता है
मो0 रफी
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मुजफ्फरपुर, जनता दल की उत्तम पैदावार ‘ राजद ‘ अपने सिद्धांतों से डिगने लगी है। जिस अभिवंचित समाज की सुरक्षा एवं उसके अधिकार की सवारी पर चढ़ कर उसने लम्बी यात्रा की थी, अब डगमगाने लगी है। कांग्रेस और बसपा की राह पर चल, वह ए टू जेड की पार्टी बन कर शहादत को गले लगाने का निश्चय कर चुकी है। कांग्रेस सर्वदलीय पार्टी थी, भाजपा के उदय के पश्चात इसका जनाधार अकलीयत व दलितों में रह गया, परंतु नेतृत्व? सवालों के घेरे में आ गया, परिणाम आप के समक्ष है। बसपा कांशी राम की कुछ और थी मायावती ने कुछ और बना दिया, परिणाम थोड़ा लाभ और बड़ी भारी हानि हो गई। ठीक वैसे ही राजद लालू जी की और थी और उनके जीते जी तेजस्वी ने कुछ और बना दिया।
मैं असल घटना क्रम का दृश्य प्रस्तुत करता हूं, बोचहां विधानसभा उपचुनाव में एक सभा को संबोधित करने मुशहरी के रोहुआ हाई स्कूल के प्रांगण में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पहुंचे तो मंच पर ब्रह्मर्षि समाज के लोगों ने चांदी का मुकुट पहना कर उनका स्वागत किया, परिणाम स्वरूप तेजस्वी के भाषण में ब्रह्मर्षि प्रेम छलकने लगा, वहीं अकलीयत व अभिवंचित समाज स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगे और हवा में अनेकों प्रश्न तैरने लगे। हालांकि वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव से पूर्व ही तेजस्वी यादव राजद को ए टू जेड की पार्टी घोषित कर चुके थे परिणाम स्वरूप राजद सत्ता की दहलीज पर जाकर ठमक गई। बोचहां विधानसभा सभा में ही मैंने देखा कि ब्रह्मर्षि समाज पूरी तरह राजद प्रत्याशी रमई राम के साथ थे, परिणाम स्वरूप अभिवंचित समाज में थोड़ा बिखराव और फिर राजद प्रत्याशी को पराजय का स्वाद चखना पड़ा। अभी जो स्थिति बन रही है वह भयावह है। अभिवंचित समाज, समाज का दबा, कुचला और पिछड़ा वर्ग संसय में है। लोगों में चर्चा जोरों पर है कि जिस समाज से सुरक्षा के लिए, सामाजिक न्याय की लड़ाई के लिए जिस पार्टी का गठन हुआ वह आज खुद को ए टू जेड की पार्टी घोषित कर रही है, अपनी सभाओं में उसे फ्रंट पर स्थान देकर अभिवंचित समाज में उपेक्षा और असुरक्षा की भावना पनप रही है साथ ही यह भी चर्चा आम है कि तेजस्वी के नेतृत्व वाली राजद का वही हाल होने वाला है जो उत्तर प्रदेश में बसपा का हुआ।
बसपा का गठन कांशी राम ने 1984 में किया था। तब बसपा बहुजन हिताय की बात करती थी, उनके नारों से यह अनुभव किया जा सकता है। नारे थे,
” ठाकुर ब्राह्मण बनिया चोर
बाकी सब हैं डी एस फोर “। व
” तिलक तराजू और तलवार
इन को मारो जूते चार “
वर्ष 1993 में मुलायम और कांशी राम में तालमेल बैठा और वे साथ आए तो नारा था,
” मिले मुलायम कांशी राम
हवा में उड़ गए जय श्री राम “
वर्ष 1995 में बसपा ने नारा दिया था,
” चढ़ गुंडन की छाती पर
मुहर लगेगी हाथी पर ”
तब बसपा के निशाने पर भाजपा और कांग्रेस समान रूप से थे, इसीलिए बसपा ने एक नारा इन दोनों के विरोध में दिया था,
” चलेगा हाथी उड़ेगी धूल
ना रहेगा हाथ, ना रहेगा फूल “
वर्ष 2006 में कांशी राम के निधन के बाद मायावती ने नये प्रयोग किए, बहुजन हिताय वाली पार्टी अब सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय वाली हो गई। 2007 के चुनाव में मायावती ने पार्टी के सिद्धांतों से समझौता कर लिया और सवर्णों को प्राथमिकता दे डाली, तब बसपा का नारा बदल गया। बसपा के खेमे से नारा लगा,
” हाथी नहीं गणेश है,
ब्रह्मा-विष्णु महेश है ” और
” पंडित संख बजाएगा,
हाथी बढ़ता जाएगा “
मायावती की रणनीति सफल हुई और देश के सबसे बड़े प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। इसलिए वर्ष 2022 के चुनाव में भी उसने इसी फार्मूले को दोहराना चाहा, परिणाम आपके समक्ष है। बसपा की प्रतिष्ठा भी नहीं बची। जुलाई 2021 में बसपा ने अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन कराया था, जिसके समापन के अवसर पर जय भीम, जय भारत के नारों के साथ ही उसकी सभा स्थल से जय श्रीराम और जय परशुराम के नारे भी निकले। हालांकि बदनामी से बचने के लिए कार्यक्रम के एक दिन पूर्व ” ब्राह्मण सम्मेलन ” का नाम बदल कर ” प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी ” कर दी गई थी। लेकिन बसपा का मैसेज स्पष्ट था, शायद इसीलिए सभा स्थल का चुनाव बड़ी सुझबुझ के साथ किया गया था। पहला सम्मेलन अयोध्या में हुआ था तो दूसरा मथुरा, तीसरा काशी और चौथा चित्रकूट में प्रस्तावित हुआ था। परंतु ये सारी रणनीति बेकार साबित हुई, और बसपा को ऐसा जोर का झटका लगा कि वह मात्र एक सीट पर सिमट गईं।
लालू बने सवर्णों का खलनायक
राजद ने बिहार में मुस्लिम 16 प्रतिशत और यादव 14 प्रतिशत को मिलाकर माई समीकरण का गठन किया और दलित, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग को आकर्षित करने के लिए भूरा बाल साफ करो का नारा दिया। इस नारा ने भूतपूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को सवर्णों का खलनायक बना दिया। लालू प्रसाद यादव जे पी आंदोलन और मंडल आंदोलन के नायक थे। वह माई समीकरण व अभिवंचित वर्ग के सम्मान की लड़ाई के बूते पंद्रह साल बिहार की सत्ता पर काबिज रहे। उनकी अगली पीढ़ी के तेजस्वी यादव ने अपने पिता की विरासत को संभाल लिया है और माई समीकरण पर बर्चस्व बरकरार रखे हुए है। तेजस्वी यादव ने अकलियत और अभिवंचित की पार्टी राजद को ए टू जेड की पार्टी बना दिया है। तेजस्वी यादव ने समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने का जो निर्णय लिया उसे काफी समर्थन मिल रहा है, इसका चुनावी लाभ भी मिल रहा है। विधान परिषद की 24 में पांच सीटों पर राजद ने 5 भुमिहार को टिकट दिया जिसमें तीन प्रत्याशी जीत कर परिषद गए। बोचहां विधानसभा के उप चुनाव में भी अंततः सफलता मिल ही गई, हालांकि इस जीत का श्रेय वी आई पी के मुकेश सहनी को जाता है जिसने अभिमानी भाजपा के विजय को पराजय में बदल दिया। राजद की सफलता में विभिन्न वर्गों का साथ मिला, परंतु इसे ब्रह्मर्षि समाज की भाजपा से नाराजगी का मूल कारण बताते हुए यह स्पष्ट कहा जा रहा है की इस समाज ने खुल कर राजद का साथ दिया। मीडिया माई समीकरण की जगह भूमाई समीकरण की जीत बता रहा है। राजद नेतृत्व भी इसी भ्रम में है, वह बोचहां विधानसभा की जीत को अपनी उस नीति की सफलता मान रहा है जिसके तहत पार्टी से सवर्णों को जोड़कर राजद को ए टू जेड की पार्टी बना दिया। लेकिन जमीनी सच्चाई यह नहीं है। मैंने चार पंचायत रोहुआ, तरौरा गोपालपुर, प्रहलादपुर और छपड़ा मेघ का अध्ययन किया तो पाया कि भूमिहार और कोईरी, कुर्मी ने शत् प्रतिशत भाजपा को वोट किया। प्रस्तुत है मुशहरी प्रखंड के गोपालपुर तरौरा पंचायत की हकीकत।
मुशहरी प्रखंड के गोपालपुर तरौरा पंचायत की हकीकत
रघुनाथपुर में बुथ संख्या 149 पर कुल मत 438 और बुथ संख्या 150 पर 468 मत पड़े जिसमें 119 मत बुथ संख्या 149 पर भाजपा को पड़े और बुथ संख्या 150 पर 191 मत भाजपा को पड़े। 119 +191= 310 मत रघुनाथपुर से भाजपा को पड़े और यह मत उसी बुथ पर पड़े जिस पर ब्रह्मर्षि समाज की संख्या है, कुल एक वार्ड के अंदर उनकी संख्या है जिसमें अनुसूचित जाति और नुनिया की भी थोड़ी संख्या है। प्रतीत होता है कि ब्रह्मर्षि समाज ने ही 310 मत भाजपा प्रत्याशी बेबी कुमारी को दिये। भले ही इसमें नुनिया जाति के भी कुछ वोट सम्मिलित हों। इससे यह स्पष्ट होता है कि ब्रह्मर्षि समाज ने राजद को वोट नहीं दिये, परन्तु अमर पासवान के पुराने सहयोगी मुकेश कुमार सिंह कहते हैं कि खबड़ा, शेरपुर और शेखपुर आदि पंचायतों में ब्रह्मर्षि समाज के लोगों ने खुल कर राजद के पक्ष में वोट किया, वह बताते हैं लगभग 30 से 40 प्रतिशत ब्रह्मर्षि मत राजद को पड़े हैं। जबकि ट्रेंड बताता है कि जिस प्रकार भाजपा को अकलीयत का 5 से 10 प्रतिशत मत पड़ता है वैसे ही राजद को भी 5 से 10 प्रतिशत मत पड़ा होगा इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। यह भी सच्चाई है कि ब्रह्मर्षि समाज ने ही राजद प्रत्याशी अमर पासवान को विजय माला पहनाने का काम किया। ब्रह्मर्षि ने खुल कर भाजपा प्रत्याशी बेबी कुमारी का विरोध किया जिसके परिणामस्वरूप राजद का बेस वोट माई समीकरण संगठित हो गया। जिसका प्रभाव विरोधी वोट पर भी पड़ा और राजद की जीत सुनिश्चित देख कर वह भी राजद के झंडे तले आ गए। वहीं तेजस्वी यादव ब्रह्मर्षि समाज के समर्थन से आश्वस्त हैं और पटना में 3 मई को भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच फाउंडेशन की ओर से आयोजित परशुराम जयंती पर , सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हम आपके साथ हाथ बढ़ाने आए हैं। यकीन जीतने आए हैं। भरोसा कीजिए कभी यकीन नहीं तोड़ेंगे। रिश्ते बनते बिगड़ते हैं लेकिन ये सब एक दिन में नहीं होता। गलती हर किसी से होती है, सुधारने का मौका मिलना चाहिए। आप हमें वोट दें न दें लेकिन जो अधिकार आपको मिलना चाहिए, वह जरुर मिलेगा। फिर तेजस्वी यादव ने भगवान परशुराम से आशीर्वाद मांगा कि उन्हें इतनी शक्ति दे कि वे हर किसी को न्याय दिला सकें। वहीं उन्होंने लालू स्टाईल में कहा ” चूड़ा आ दही अभी फेंटाता, पूरा सना जाई त अलगे रंग हो जाई। “
पराया के चक्कर मे अपने ना बिछड़ जाये
राजद के ए टू जेड की पार्टी बनने पर बड़ा विवाद है। सवर्णों को आज भी लालू जी की भूरा बाल साफ करो वाली उक्ति याद है। भूरा बाल अथवा भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला व कायस्थ के निर्मूलन का लालू जी का आह्वान याद है तो अभिवंचित समाज को सवर्णों का व्यवहार आज भी याद है, ऐसे में संकट गहरा सकता है। पराया के चक्कर में अपने भी बिछुड़ सकते हैं और पराया तो पराया ठहरा जिसका भरोसा केवल दिल बहलाने के लिए ही होता है। इसलिए आज की सफलता कल की नाकामी साबित हो सकती। मायावती के बसपा की 2007 और 2022 के रणनीति का अवलोकन कर उससे शिक्षा ली जा सकती है।