नई दिल्ली: दुनियाभर में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) के रूप में मनाया जाता है. ये दिन दुनियाभर की महिलाओं की उपलब्धियों और मानव अस्तित्व में उनके योगदान को समर्पित है. साल 2022 का थीम है ‘Gender Equality Today For A Sustainable Tomorrow’ यानी बेहतर और स्थायी कल के लिए लैगिंग समानता. खुशखबरी ये है कि आजादी के बाद पहली बार देश में पुरुषों से ज्यादा संख्या महिलाओं की हो गई है.

पुरुषों की तुलना में महिलाएं हुईं ज्यादा

राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey) के अनुसार, देश में 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं हो गई हैं. आजादी के बाद पहली बार ये रिकॉर्ड बना है जब पुरुषों की तुलना में महिलाओं की आबादी 1000 से अधिक हो गई है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण( NFHS-5) के आंकड़ों में गांव और शहर में पुरुषों और महिलाओं के अनुपात की तुलना की गई. सर्वे के अनुसार, ये अनुपात शहरों की तुलना में गांवों में ज्यादा बेहतर हुआ है. गांवों में जहां हर 1,000 पुरुषों पर 1,037 महिलाएं हैं, वहीं शहरों में 985 महिलाएं हैं. इससे पहले NFHS-4 (2019-2020) के आंकड़ों में गांवों में प्रति 1,000 पुरुषों पर 1,009 महिलाएं थीं और शहरों में ये आंकड़ा 956 का था.

लैंगिक असमानता

लेकिन चिंता की बात ये है कि विश्व बैंक के डाटा के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं का योगदान सिर्फ 17 फीसदी है. ये आंकड़ा दुनिया के औसत से आधा है. वहीं अगर पड़ोसी देश चीन की बात करें तो वहां पर महिलाओं का GDP में योगदान 40 फीसदी से ज्यादा है.

महिलाओं का लेबर फोर्स में हिस्सेदारी की बात की जाए तो भारत का नंबर 131 देशों में से 120वां है. ऐसे में अगर देश में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों के समान हो जाए तो साल 2025 तक भारत की GDP में 60 प्रतिशत तक का इजाफा हो जाएगा. देश की GDP में सीधे-सीधे 2.9 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हो जाएगी.

विधायिका में महिलाएं कम, कौन रखेगा आधी आबादी की बात?

महिलाओं को संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला कानून अब तक पास नहीं हो पाया. हालांकि पंचायत स्तर पर महिलाओं को आरक्षण मिल रहा है मगर उसमें भी बड़ी संख्या प्रधान पतियों की है. वहीं देश के सबसे बड़े जनप्रतिनिधियों की बात करें तो वहां महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है. 17वीं लोक सभा में कुल 14.92 प्रतिशत महिलाएं (81) हैं. वहीं राज्य सभा में ये आंकड़ा और भी कम महज 11.84 प्रतिशत है. इसके अलावा देशभर की विधान सभाओं में महिलाओं की भागीदारी कम होकर सिर्फ 8 प्रतिशत रह जाती है.

न्यायपालिका में महिलाएं कम, कैसे मिलेगा आधी आबादी को पूरा इंसाफ?

मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट के कुल 34 जजों के पद में से महिलाएं के हिस्से में सिर्फ 4 ही आए हैं. न्याय के सबसे बड़े मंदिर में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से थोड़ा ही ज्यादा है. अगर हाई कोर्ट की बात की जाए तो आकंड़े और खराब हो जाते हैं. हाई कोर्ट में कुल 1098 जज के पद में से सिर्फ 83 पर ही महिलाएं आसीन हैं.

गौरतलब है कि न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम है. यहां पर किसी किस्म के आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं हैं.

पुलिस फोर्स में एक-तिहाई महिलाएं कब होंगी?

भारत में महिलाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती सुरक्षा की है. घर के अंदर से लेकर घर के बाहर तक, कदम-कदम पर हमारा समाज उनके मन में असुरक्षा का भाव जगाता है. ऐसे में हमारी पुलिस फोर्स में महिलाओं की पर्याप्त संख्या होने चाहिए. पिछले करीब 9 सालों से गृह मंत्रालय एडवाइजरी जारी कर रहा है कि कुल पुलिस बल में महिलाओं की संख्या 33 प्रतिशत होनी चाहिए. सभी राज्यों से आग्रह किया गया है कि पुलिस कांस्टेबल के खाली पदों को महिला कांस्टेबल के लिए आरक्षित करके उन्हें भरा जाना चाहिए.

साल 2020 में ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च और डेवलपमेंट के आंकड़ों के अनुसार, देशभर पुलिस बलों की कुल संख्या 20,91,488 थी. महिला पुलिस बलों की संख्या 2,15,504 थी जो कि कुल संख्या का 10.30 प्रतिशत है.

Source : Zee News

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