अरे कहले नीतीश जी, दारू भइल साफ हो…1200 में फूल मिले…600 में हाफ हो…। आजकल ये गाना हर लोगों की जुबां पर छाया हुआ है। क्योंकि ये गाना शराबबंदी की सच्चाई की पोल खोल रहा है। इसे गाने वाले मुजफ्फरपुर के सरैया के रहने वाले रविन्द्र कुमार अकेला हैं। उन्होंने खुद ही इस गाने के बोल भी लिखे हैं। आजकल जहां भी वे कार्यक्रम करने जाते हैं। हर कोई उनसे इसी गाना को गाने की फरमाइश करता है।

उन्होंने सबसे पहले ये गाना एक होली मिलन समारोह में गाया था। इसके बाद से इसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगा। देखते-देखते सैकड़ो, हजारों लोग इसे शेयर और कमेंट करने लगे। एक तरफ इंदु देवी शराबबंदी जैसी कुरीतियों पर गाना गाकर पिछले दिनों खूब सुर्खियां बटोर रही थीं। वहीं ठीक इसके उल्टे रविन्द्र अकेला ने शराबबंदी के बाद भी शराब के चल रहे धंधे पर तंज करते हुए गीत लिखा है। जिसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं।



गाने के पीछे की कहानी
रविन्द्र बताते हैं कि- ‘इस गाना को लिखने के पीछे भी एक मजेदार कहानी है। उन्होंने बताया, कुछ दिन पहले वे एक कार्यक्रम से लौट रहे थे। इसी दौरान रास्ते मे एक जगह रुके। वहां पर एक बूढ़ी औरत थी। उनके हाथ मे शराब की एक बोतल थी। जब उन्होंने उस महिला से पूछा कि ये क्या लेकर घूम रही हैं। तो महिला ने कहा कि देखअ न, हमर बेटवा 1200 में ई बोतल किन के लयलक हअ…। तभी उनके दिमाग मे आया कि अगर 1200 रुपए में फूल बोतल (बड़ी वाली 750ML) आती है तो आधी बोतल 600 में मिलती होगी। बस यहीं से इन्हें गाने के बोल मिल गए।

एक महीने में किया तैयार
रविन्द्र ने बताया कि एक महीने में इस गाने को तैयार किया। फिर गाकर प्रैक्टिस भी की। इसके बाद थोड़ा होली वाला टोन इस्तेमाल किया और एक कार्यक्रम में गाना गाने का मौका मिल गया। इस गाने को सुनने वाले हर लोगों ने तारीफ की। कहने लगा कि ये तो समाज और शराबबंदी की सच्चाई है। यही तो आजकल समाज मे हो रहा है।

पुलिस-प्रशासन पर भी निशाना
रविंद्र ने बताया, गाने में सिर्फ सरकार पर कटाक्ष नहीं है। बल्कि जिन्हें सबसे अधिक इसपर रोक लगाने की जिम्मेवारी दी गयी है। उनपर भी जमकर निशाना साधा है। गाने के बीच मे पुलिस-प्रशासन पर भी कटाक्ष किया गया है। बताते हैं कि किस तरह थाना स्तर पर शराब मामले में खेल होता है और काफी हद तक इसमे सच्चाई भी नजर आती है।

2010 से गा रहे हैं गाना
रविंद्र बताते हैं कि वर्ष 2010 से ही लोकगीत गाते हैं। अलग-अलग जगहों पर जाकर कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। भजन-कीर्तन और जागरण भी करते हैं। इसे से घर भी चलता है। यही हमारा रोजी-रोटी का साधन भी है। कहते हैं अपने काम से खुश हूं। जनता से एक अपील है कि शराब चाहे पैसे से मिले या मुफ्त में। इसका सेवन नहीं करें। यह सेहत और परिवार दोनों के लिए हानिकारक है।

इनपुट : दैनिक भास्कर

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