हिंदू धर्म में प्रमुख त्योहारों में से एक मकर संक्रांति का त्योहार माना जाता है। इस साल मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी, शुक्रवार को ही मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसके कारण इसे मकर संक्रांति नाम से जाना जाता है। इस दिन को उत्तरायण और खिचड़ी नाम से भी कहा जाता है। इस पावन दिन में पवित्र नदियों में स्नान करना और दान-पुण्य शुभ माना जाता है। जानिए मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पौराणिक कथाएं।

क्यों मनाई जाती हैं मकर संक्रांति?

वर्ष में कुल बारह संक्रांतियां होती हैं, जिनमें से सूर्य की मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति बेहद खास हैं | इन दोनों ही संक्रांति पर सूर्य की गति में बदलाव होता है। जब सूर्य की कर्क संक्रांति होती है, तो सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन होता है और जब सूर्य की मकर संक्रांति होती है, तो सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है। सीधे शब्दों में कहें तो सूर्य के उत्तरायण होने का उत्सव ही मकर संक्रांति कहलाता है। इसलिए कहीं- कहीं पर मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहते हैं। उत्तरायण काल में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं, वहीं दक्षिणायन काल में ठीक इसके विपरीत- रातें बड़ी और दिन छोटा होने लगता है।

मकर संक्रांति 2022 का शुभ मुहूर्त

14 जनवरी को सूर्य देव मकर राशि में दोपहर 2 बजकर 43 मिनट पर प्रवेश करेंगे। मकर संक्रांति का पुण्य काल 3 घंटा 02 मिनट का है। जो दोपहर 2 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर शाम 5 बजकर 45 मिनट तक है। मकर संक्रांति का महापुण्य काल 01 घंटा 45 मिनट का है जो दोपहर 2 बजकर 43 मिनट से शाम 4 बजकर 28 मिनट तक है।

मकर संक्रांति का महत्व

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार मकर संक्रांति को लेकर कहा जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है । इसलिए इस दिन दान, जप-तप का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है । इस दिन व्यक्ति को किसी गृहस्थ ब्राह्मण को भोजन या भोजन सामग्रियों से युक्त तीन पात्र देने चाहिए। इसके साथ ही संभव हो तो यम, रुद्र और धर्म के नाम पर गाय का दान करना चाहिए। यदि किसी के बस में ये सब दान करना नहीं है, तो वह केवल फल का दान करें, लेकिन कुछ न कुछ दान जरूर करें। साथ ही मत्स्य पुराण के 98वें अध्याय के 17 वें भाग से लिया गया यह श्लोक पढ़ना चाहिए-

‘यथा भेदं न पश्यामि शिवविष्णवर्कपद्मजान्।

तथा ममास्तु विश्वात्मा शंकरः शंकरः सदा।।’

इसका अर्थ है- मैं शिव एवं विष्णु तथा सूर्य एवं ब्रह्मा में अन्तर नहीं करता। वह शंकर, जो विश्वात्मा है, सदा कल्याण करने वाला हो।

मकर संक्रांति की पौराणिक कथा

माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव के घर एक महीने के लिए उनसे मिलने जाते हैं। ये दिन खास तौर से पिता पुत्र के लिए विशेष माना जाता है। क्योंकि इस दिन पिता-पुत्र का रिश्ता निकटता के रूप में देखा जाता है। वैसे ज्योतिष की दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल असंभव है। लेकिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं।

मकर संक्रांति को मनाने के पीछे एक कथा ये भी है कि इस दिन भगवान विष्णु ने मधु कैटभ नाम के एक राक्षस का वध किया था। उन्होंने मधु के कंधों पर मंदार पर्वत रख कर उसे दबा दिया था। इस दिन भगवान विष्णु को मधुसुधन का नाम दिया गया था। इसके साथ ही बुराई में जीत के साथ इस त्योहार को मनाया जाता है।

संक्रांति के अवसर पर पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण अवश्य करना चाहिए। कहा जाता है कि आज के दिन महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गंगा में तर्पण किया था। मकर संक्रांति के खास मौके पर गंगा सागर में आज भी मेला लगता है।

महाभारत काल में भीष्म पितामह ने भी अपने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था। भीष्म ने मोक्ष पाने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात अपने शरीर को त्याग दिया था। उत्तरायण में शरीर त्यागने वाले व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष मिलता है और देवलोक में रहकर आत्मा पुनः गर्भ में लौटती है।

मकर संक्रांति के अवसर पर ही मां यशोदा ने कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था। उस समय सूर्य देवता उत्तरायण काल में पर्दापण कर रहे थे और तभी सूर्य देव ने मां यशोदा को उनकी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद दिया था।

Input : Khabar India Tv

19 thoughts on “Makar Sankranti 2022 : कब है मकर संक्रांति? जानिए शुभ मुहर्त, महत्व और पौराणिक कथाएं”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *