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बगहा (पश्चिम चंपारण). भारत विविधताओं वाला देश है. यहां पुरातन काल से ही अनेक प्रथाओं को मानने वाले लोग रहते आए हैं. आज भी अपने देश में भिन्‍न-भिन्‍न संस्‍कृतियों के लोग निवास करते हैं. इसी तरह बिहार में भी कई प्रथाएं और मान्‍यताएं प्र‍चलित हैं, जिनका आज भी लोग पूरी शिद्दत के साथ पालन करते हैं. पश्चिम चंपारण के बगहा के एक गांव में एक ऐसी ही प्रथा का पालन किया जाता है. इस गांव के लोग प्रत्‍येक साल के बैसाख के नवमी के दिन 12 घंटों के लिए अपना घर छोड़ देते हैं. ग्रामीण इस अवधि में जंगलों में निवास करने चले जाते हैं. इस विचित्र मान्‍यता का पालन आज भी किया जा रहा है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्‍यों सभी ग्रामीण 12 घंटों के लिए गांव को छोड़ कर जंगल में रहने चले जाते हैं? इसके पीछे क्‍या मानयता है?

दरअसल, बिहार के पश्चिमी चंपारण जिला के बगहा स्थित नौरंगिया गांव के लोग एक दिन के लिए पूरा गांव खाली कर देते हैं. बैसाख की नवमी तिथि को लोग ऐसा करते हुए 12 घंटे के लिए गांव के बाहर जंगल में चले जाते हैं. वर्षों से ऐसी मान्यता है कि इस दिन ऐसा करने से देवी के प्रकोप से निजात मिलती है. थारू बाहुल्य इस गांव के लोगों में आज भी अनोखी प्रथा जीवंत है. इसके चलते नवमी के दिन लोग अपने साथ-साथ मवेशियों को भी पीछे छोड़ने की हिम्मत नहीं करते हैं. लोग जंगल में जाकर वहीं पूरा दिन बिताते हैं. गांव के लोगों के मुताबिक इस प्रथा के पीछे की वजह देवी प्रकोप से निजात पाना है. बताया जाता है कि वर्षों पहले इस गांव में महामारी आई थी. गांव में अक्सर आग लगती थी. चेचक, हैजा जैसी बीमारियों का प्रकोप रहता था. हर साल प्राकृतिक आपदा से गांव में तबाही का मंजर नजर आता था. इससे निजात पाने के लिए यहां एक संत ने साधना कर ऐसा करने को कहा था. इसका अनुसरण आज भी यहां भली-भांति किया जा रहा है.

पूरा गांव खाली

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल में स्थित नौरंगिया गांव के लोग बताते हैं कि यहां रहने वाले बाबा परमहंस के सपने में देवी मां आई थीं. मां ने बाबा को गांव को प्रकोप से निजात दिलाने का आदेश दिया कि नवमी को गांव खाली कर पूरा गांव वनवास को जाए. इसके बाद यह परंपरा शुरू हुई जो आज भी कायम है. यही वजह है कि नवमी के दिन लोग अपने घर खाली कर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व स्थित भजनी कुट्टी में पूरा दिन बिताते हैं औऱ यहां मां दुर्गा की पूजा करते हैं. 12 घंटे गुजरने के बाद वापस अपने अपने घर चले जाते हैं. हैरानी की बात तो यह है कि आज भी इस मान्यता को लोग उत्सव की तरह मना रहे हैं. वन विभाग जंगल में आग जलाने समेत इतनी भारी संख्या में लोगों के जुटने पर रोक लगाने में नाकाम साबित हो रहा है, क्योंकि बात आस्था की है. ऐसे में पुलिस प्रशासन भी मूकदर्शक बना रहता है.

घरों में नहीं लगाते ताले

इस पूरे मामले के बारे में ग्रामीण महेश्वर काज़ी औऱ ख़ुद पुजारी जीतन भगत ने बताया कि इस दिन घर पर ताला भी नहीं लगाया जाता है. पूरा घर खुला रहता है और चोरी भी नहीं होती. लोगों के लिए गांव छोड़कर बाहर रहने की यह परम्परा किसी उत्सव से कम नहीं होती है. इस दिन जंगल में पिकनिक जैसा माहौल रहता है. यहीं मेला लगता है. पूजा करने के बाद रात को सब वापस अपने घर चले आते हैं. फिलहाल, इस गांव की इस मान्यता को देखने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि आधुनिकता औऱ विज्ञान के इस दौर में मान्यता से परे कुछ भी नहीं है.

Source : News18

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