केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान गईची मछली और सादी रोटी बड़े ही चाव से खाते थे। पासवान जब भी अपने संसदीय क्षेत्र में आते तब कार्यकर्ता और उनके चहेते लोग पोखर की ताजी मछली निकलवाते थे और बनवाते थे। वे जनसभा और बैठकों के बाद बड़े ही प्रेम से कार्यकर्ताओं और अपने समर्थकों के साथ बैठकर भोजन करते थे। इस दौरान राजनीतिक और सामाजिक चर्चाएं होती थी। इस दौरान विभिन्न प्रकार की सामाजिक समस्याओं का निराकरण भी हो जाया करता था।

हाजीपुर संसदीय क्षेत्र भ्रमण के दौरान पासवान अपने कार्यकर्ताओं से अलग-अलग मिलकर उनकी बातें सुनते थे। उनके बात कर लेने से लोगों में बड़ा ही विश्वास पैदा होता था।

लोग खुश हो जाते थे। उनका काम भी हो जाया करता था। हाजीपुर के विकास के प्रति वे सदैव प्रयासरत रहते थे। हाजीपुर में भारतीय रेलवे का जोनल कार्यालय पूर्व मध्य रेलवे उन्हीं के द्वारा लाया गया था। इसी तरह से गांधी सेतु के निर्माण में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। इसके अलावा हाजीपुर शहर के चौमुखी विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें 10 को तक याद किया जाएगा।

जिनकी जुबान हर समय कहा करती थी- हाजीपुर मेरी मां है
वर्ष 1977 से लेकर 2020 तक के संसदीय सफर में जिनकी जुबान हर समय हाजीपुर को अपनी मां कहा करती थी, वे रामविलास पासवान अब नहीं रहे। यह खबर मिलते ही वह हाजीपुर संसदीय क्षेत्र मर्माहत हो उठा जिसने 1977 में इतने वोटों की बख्शीश दी कि उनका नाम गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हुआ। इसी धरती के लोगों ने वर्ष 1989 के चुनाव में अपना ही चुनावी रिकार्ड तोड़ने का अवसर दिया। इसके बाद उनका जो राजनीतिक सफर शुरू हुआ, वह हरकदम के साथ नयी ऊंचाइयां छूता चला गया। फर्श से अर्श तक के सफर में कदम-कदम पर हाजीपुर के लोगों ने उनका साथ दिया।

इतना ही नहीं, जब अपने गिरते स्वास्थ्य के कारण वर्ष 2019 का चुनाव लड़ने में असमर्थता जतायी तो इस क्षेत्र ने उनके भाई पशुपति पारस को उनका ही प्रतिरूप मानकर संसद में भेजा। ऐसा था रामविलास जी का जादुई व्यक्तित्व जो संपर्क में आनेवाले हर व्यक्ति को अपना बना लेता था। हाजीपुर को अपनी मां कहने के साथ ही वे हर सभा में अपने भाषण की शुरुआत एक बड़े ही प्रभावोत्पादक वाक्य से किया करते थे – मैं उस झोपड़ी में दिया जलाने चला हूं, जहां सदियों से अंधकार छाया है। इसके साथ ही वह माली भी चला गया जो बराबर कहा करता था कि अच्छा माली वही है जो बाग के सभी फूलों को समान भाव से सींच कर बड़ा करता और उन्हें खिलने लायक बनाता है। यही उनके राजनीतिक जीवन की फिलासफी रही।

जिले को सौगातें देने वाले बेटे को हरदम याद रखेगा हाजीपुर
एक छोटे से शहर को विकास की कई सौगात सौंपने के लिए हाजीपुर हमेशा स्व. रामविलास पासवान को याद करेगा। राज्य की राजधानी के ठीक बगल के इस कस्बाई शहर में पासवान ने कई संस्थान को यहां स्थापित कराया। जिस भी मंत्रालय की जिम्मेवारी रामविलास पासवान ने निभाई उस मंत्रालय के किसी प्रमुख गतिविधि का केन्द्र हाजीपुर को जरूर बनाया।

यही कारण था कि रेल मंत्री रहते हुए 2002 में पूर्व मध्य रेल के जोनल कार्यालय हाजीपुर में बना। कई अधिकारियों का आवास पटना में होने के बाद भी पूर्व मध्य रेल को हाजीपुर के नाम से जाना जाता है। इसी तरह 1994 में सेन्ट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी का संस्थान हाजीपुर के औद्योगिक इलाके में खुला। 1998 में होटल मैनेजमेंट संस्थान और 2007 में नाईपर जैसा प्रमुख संस्थान रामविलास पासवान के हीं प्रयासों का नतीजा रहा। बाद में भले ही इन प्रमुख संस्थानों का विकास स्थानीय राजनीति की भेंट चढ़ गया, लेकिन हाजीपुर जैसे छोटे शहर में देश के दुर दराज इलाके के छात्र यहां शिक्षा लेने आते हैं। सिपेट में तो हाजीपुर और आसपास के कई जिलों के छात्र पढ़ाई पुरी कर देश के कई स्थानों पर नौकरी या व्यवसाय कर रहे हैं।

नाईपर की स्थापना के कई साल बीतने के बाद भी इस संस्थाना का संभावित विकास नहीं हो पाया हो। लेकिन आज भी यहां सूदुर कश्मीर तो दक्षिण केरल राज्य के छात्र पढ़ाई करने आते हैं। इसका लाभ स्थानीय छात्रों को भी मिला है। ऐसे में जब हाजीपुर को अपनी मां का दर्जा देने वाले रामविलास पासवान की इन सौगातों के लिए हाजीपुर हमेशा इन्हें अपने दिल में बसा कर रखेगा।

इनपुट : हिंदुस्तान

One thought on “हाजीपुर को अपनी माँ मानते थे रामविलास पासवान, बड़े चाव से खाते थे गईची मछली और रोटी”
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