मुजफ्फरपुर, राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव समेत 38 दोषियों को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए डोरंडा चारा घोटाला केस में रांची की सीबीआई की विशेष अदालत ने आज सजा सुनाई. इस मामले में लालू प्रसाद यादव को पांच साल की जेल और 60 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है. लालू यादव के अलावा चारा घोटाला के इस बड़े मामले में 37 अन्य दोषियों को भी सजा सुनाई गई है.
झारखंड में चल रहे चारा घोटाला के डोरंडा कोषागार के सबसे बड़े मुकदमे में सीबीआइ की विशेष अदालत बीते 15 फरवरी को राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को दोषी करार दिया था. इसके बाद साेमवार को अपराह्न डेढ़ बजे के बाद अदालत ने पांच साल की सजा दी। उपनर 60 लाख रुपये का आर्थिक दंड भी लगाया गया है। इसके साथ लालू प्रसाद यादव झारखंड में चारा घोटाला के सभी पांच मामलों में सजा पा चुके हैं।
रांची स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने सोमवार को जिस मामले में उन्हें 5 साल की सजा सुनाई है और 60 लाख रुपए का जुर्माना भरने का आदेश दिया है, वह रांची के डोरंडा ट्रेजरी से 139. 5 करोड़ रुपए की अवैध निकासी से संबंधित है। चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ कुल 6 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें पांच मामले झारखंड के और एक मामला बिहार का है।
अब तक पांच मामलो में साढ़े 32 साल की सजा
चारा घोटाले का पहला मामला चाईबासा कोषागार से 37.7 करोड़ की अवैध निकासी का था, जिसमें लालू यादव को 5 साल की सजा सुनाई गई थी।
दूसरा मामला देवघर कोषागार से 84.53 लाख रुपए की अवैध निकासी का था। इसमें लालू यादव समेत 38 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इस मामले में लालू प्रसाद को साढ़े तीन साल की सजा और 5 लाख का जुर्माना लगाया गया था।
तीसरा मामला भी चाईबासा कोषागार से जुड़ा था। इस मामले में लालू प्रसाद को पांच साल की सजा दी गई थी और 10 लाख का जुमार्ना लगाया गया था। यह मामला 33.67 करोड़ रुपए की अवैध निकासी का था।
चौथा मामला दुमका कोषागार का था। इस मामले में 3.13 करोड़ रुपए की अवैध निकासी का आरोप था। इसमें लालू प्रसाद यादव को दोषी करार देते हुए दो अलग-अलग धाराओं में 7-7 साल की सजा सुनाई गई थी, साथ ही 60 लाख रूपए का जुर्माना भी लगाया गया था।
सरेंडर केा तैयार नहीं थे लालू, पहली गिरफ्तारी में खूब हुई नौटंकी
आगे 30 जुलाई 1997 को चारा घोटाला के मामले में लालू की पहली गिरफ्तारी हुई थी। इसके पहले उन्होंने मुख्यमंत्री का पद छोड़ पत्नी राबड़ी देवी को कुर्सी पर बैठा दिया था। लालू की गिरफ्तारी के लिए 29 जुलाई 1997 की रात में मुख्यमंत्री आवास को रैपिड एक्शन फोर्स ने घेर लिया था, लेकिन वे समर्पण करने के लिए तैयार नहीं थे। हिंसक विरोध की उनकी धमकी को देखते हुए स्थिति से निपटने के लिए सेना की तैनाती तक की चर्चा होने लगी थी। अंतत: लालू को झुकना पड़ा और 30 जुलाई की सुबह उन्होंने सीबीआइ कोर्ट में सरेंडर कर दिया।
नीतीश बोले- मुझे कुछ नहीं कहना है
नीतीश का कहना था कि इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है। हमने तो केस किया ही नहीं है, केस वाले उन्हीं के साथ हैं। उनके पास अधिकार है कि वह आगे के कोर्ट में अपील करेंगे।
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