मुजफ्फरपुर. उत्तर बिहार के केन्द्र बिन्दु माने जाने वाले मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) का गौरवशाली इतिहास रहा है. मुजफ्फरपुर की पहचान समाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और रजानातिक दृष्टि से एक जागृत जगह के रूप में पहचान होती है. मुजफ्फरपुर की पहचान 16 महाजनपदों में से वज्जिकांचल के केन्द्र विन्दु के तौर पर होती है. कुल 3172 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पहले मुजफ्फरपुर गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती और लखनदेई नदी बहती है. हजारों साल पुराने इतिहास को अपने में समेटे मुजफ्फरपुर वैशाली गढ़ और वैशाली से सटा हुआ तिरहुत प्रक्षेत्र का केन्द्र है. करीब साढ़े तीन सौ साल पहले अकबर (AKBAR) के शासनकाल में तिरहुत क्षेत्र के इस क्षेत्र को राजस्व के तहसील का केन्द्र बनाया गया.
बाद में अंग्रेजों ने 1875 में प्रशासनिक सुविधा के लिए तिरहुत के इस केन्द्र से राजस्व वसूलने के लिए राजस्व पदाधिकारी मुजफ्फरपुर खान की तैनाती की और इस तरह अंग्रेजों के बड़े राजस्व केन्द्र क रूप में पहचान बनाने वाले इस केन्द्र को मुजफ्फरपुर खान के नाम पर इस शहर का मुजफ्फरपुर नाम पड़ा.
आधुनिक स्वरूप
आधुनिक समय में मुजफ्फरपुर उत्तर बिहार के तिरहुत प्रमंडल का मुख्यालय है. मुजफ्फरपुर की पहचान इस्लामी और हिन्दू सभ्यता की मिलन स्थली के रूप में भी है. 1972 तक मुजफ्फरपुर जिले में शिवहर ,सीतामढ़ी और वैशाली जिला भी शामिल था. मुजफ्फरपुर की पहचान शाही लीची के लिए होती है. यहां से उत्पादित लीची में गुलाब के फ्लेवर होता है जिसके कारण शाही लीची की मांग देश-विदेश में काफी होती है. लाह की चूड़ियों के लिए भी इस शहर की पहचान है. मुजफ्फरपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में लाह से तैयार लहठी की मांग देश के दूसरे हिस्सों में काफी है. यहां के सूतापट्टी कपड़ा आपूर्ति का बड़ा केन्द्र है. मुंबई और सूरत के मिलों से तैयार कपड़े सीधे सूतापट्टी पहुंचती रही है जिसके बाद यहां से कपड़े की आपूर्ति पूर्वी भारत के दूसरे राज्यों में होती रही है.
आजादी का आंदोलन
मुजफ्फरपुर क्षेत्र की मिट्टी काफी उर्वर है और यहां के लोग में काफी मृदुभाषी होते हैं. आजादी की लड़ाई में भी मुजफ्फरपुर का एक महत्वपूर्ण केन्द्र बनकर उभरा. खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी जैसे क्रांतिकारी ने अंग्रेजों को भगाने के लिए मुजफ्फरपुर में ही शहादत दी. चम्पारण सत्याग्रह के प्रयोग के लिए गांधी जी ने यहीं से ताना-बाना बुना और आन्दोलन के लिए चिंतन और विचार-विमर्श के केन्द्र के रूप में मुजफ्फरपुर को ही चुना. गांधी के नमक आन्दोलन से लेकर भारत छोड़ो आन्दोलन में ही मुजफ्फरपुर की काफी सक्रिय भूमिका रही.
साहित्यिक- सांस्कृतिक विरासत
आजादी के बाद भी गांधीवादी चिंतन के अलावे समाजवादी चिंतन की धारा में मुजफ्फरपुर की धरती ने एक-से बढ़कर एक महापुरूषों को राष्ट्रीय धारा में अवतरित किया. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद मुजफ्फरपुर के एल एस एस कॉलेज में ही प्राध्यापक थे. जबकि आचार्य कृपलानी से लेकर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर भी एल एस कॉलेज से प्राध्यापक होकर ही राष्ट्रीय फलक के केन्द्र बिन्दु तक पहुंचे.
विधानसभा के पहले स्पीकर रामदयालु सिंह से लेकर लोहिया और जेपी के समाजवादी चिंतन के प्रयोग की भूमि के तौर पर मुजफ्फरपुर की पहचान है. सन 1962 में राम मनोहर लोहिया मुजफ्फरपुर के गांवों में विचरण करते रहे तो जेपी ने 66 से 72 के बीच मुजफ्फरपुर में रहकर समाजिक और राजनीतिक बदलाव लाने के लिए इसी धरती पर प्रयोग किया.
मुजफ्फरपुर को साहित्य और सांस्कृतिक चेतना के उन्नत केन्द्र के रूप में भी जाना जाता है. साहित्य के क्षेत्र में पहली साहित्यक पत्रिका कथा लाहिड़ी यहीं से देवकी नंदन खत्री ने निकाला जबकि पहला प्रेस ,लाहिड़ी प्रेस 1925 में मुजफ्फरपुर से ही चन्द्रकांता संतति जैसे कालजयी उपन्यास लिखने वाले देवकी नंदन खत्री ने मुजफ्फरपुर से ही निकाला. यहां का गरीबनाथ मंदिर विभाजित बिहार के बाद सावन में बाबा भोले को जलाभिषेक के लिए बड़ा केन्द्र बना
Input : News18
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