मुजफ्फरपुर. बिहार विधानसभा चुनाव-2020 (‌Bihar Assembly Election-2020) के लिए सियासी बिगुल बज चुका है. हालांकि, आधिकारिक तौर चुनावों (Election) की घोषणा नहीं हुई, लेकिन सूबे में सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. मुजफ्फरपुर विधानसभा में हर बार चुनावी परिणाम रोचक रहता है. इस सीट पर कांग्रेस, भाजपा (BJP) के अलावा क्षेत्रीय और निर्दलीयों का भी डंका बजता रहा है. लेकिन बीते तीस साल से कांग्रेस इस सीट पर जीत के लिए तरस रही है. बीते दस साल से यहां अब भगवा लहरा रहा है और भाजपा के पास यह सीट है.

हैरान करने वाली नतीजे

मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र साठ के दशक से ही अप्रत्याशित परिणाम के लिए जाना जाता रहा है. विधानसभा चुनाव-1957 में महामाया प्रसाद ने दिग्गज कांग्रेसी महेश बाबू को पटखनी दी और विधायक बन गए. बाद में उन्होंने सूबे की कमान संभाली और मुख्यमंत्री बने. इस बार जहां दूसरी पार्टियां जीत के लिए जुगत भिड़ा रही हैं. वहीं, भाजपा हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरेगी. कांग्रेस के अलावा, राजद और दूसरी पार्टियों के सामने वापसी की चुनौती रहेगी.

एक दशक से भाजपा का राज10 साल से यह सीट भाजपा के पास है. मंत्री सुरेश कुमार शर्मा यहां से विधायक हैं. सुरेश कुमार पिछले 20 साल से मुजफ्फरपुर विधानसभा के चुनावी अखाड़े डटे हैं. वर्ष 2000 और 2005 के चुनाव में उन्हें विजेन्द्र चौधरी से हार मिली थी. लेकिन उसके बाद से लगातार दो बार से यहां के विधायक हैं. 2005 के बाद से यह सीट भाजपा के पास है.

कांग्रेस दिग्गज को हराया

साल 1995 के चुनाव में मुजफ्फरपुर की राजनीति में ब़ड़ा उलटफेर हुआ. विजेन्द्र चौधरी ने एंट्री मारी. कांग्रेस के दिग्गज नेता और तीन बार विधायक रघुनाथ पांडेय को हराया. उस समय विजेन्द्र चौधरी जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और विधानसभा में दस्तक दी. हालाकिं, बाद में उन्होंने पार्टी बदली और 2000 में राजद और 2005 में निर्दलीय चुनाव जीते. फिर कांग्रेस का हाथ थामा. भाजपा की विनिंग सीट होने के कारण गठबंधन में यह सीट भाजपा को मिल सकती है. भाजपा चुनाव जीतकर यहां से हैट्रिक लगाना चाहेगी. कांग्रेस 25 साल से यहां से जीत का स्वाद नहीं चख पाई है. वहीं, राजद 20 साल से मैदान से बाहर है. भाजपा के लिए सीट प्रतिष्ठा का सवाल भी है, क्योंकि यहां से उनके विधायक कैबिनेट मंत्री हैं.

विधानसभा सीट का इतिहास
मुजफ्फरपुर विधानसभा क्षेत्र में पहला चुनाव 1952 में हुआ था. शिव नंदा पहले विधायक थे. दूसरे चुनाव में 1957 सारण के महामाया प्रसाद चुनाव जीते थे और 1967 में तो वह पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे. विधानसभा क्षेत्र की कुल आबादी 4,16,026 है और यहां कुल मतदाता 3,14,902 हैं.

कौन, कब, किस पार्टी से जीते

साल 1952- शिवनंदा- कांग्रेस
साल 1957- महामाया प्रसाद- पीएसपी
साल 1962- देवनंदन- कांग्रेस
साल 1967- एमएल- गुप्ता कांग्रेस
साल 1969- रामदेव शर्मा- सीपीआई
साल 1972- रामदेव शर्मा- सीपीआई
साल 1977- मंजय लाल- जनता पार्टी
साल 1980- रघुनाथ पांडे- कांग्रेस
साल 1985- रघुनाथ पांडे- कांग्रेस
साल 1990- रघुनाथ पांडेय- कांग्रेस
साल 1995- विजेन्द्र चौधरी- जनता दल
साल 2000- विजेन्द्र चौधरी- राष्ट्रीय जनता दल
साल 2005(फरवरी)- विजेन्द्र चौधरी-आजाद
साल 2005 (अक्टूबर)- विजेन्द्र चौधरी- आजाद
साल 2010- सुरेश शर्मा-भाजपा
साल 2015- सुरेश शर्मा-भाजपा

Input : News18

22 thoughts on “मुजफ्फरपुर विधानसभा सीट : 30 बरस से जीत को तरस रही कांग्रेस, हैट्रिक की तैयारी मे बीजेपी”
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