मुजफ्फरपुर में 780 स्वास्थ्यकर्मियों की बहाली में घोटाले को लेकर हंगामा मचने के बाद राज्य सरकार ने नियुक्ति को रद्द कर दिया है. सरकार द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि मुजफ्फरपुर के डीएम के प्रतिवेदन के आधार पर नियुक्ति को रद्द किया गया है. स्वास्थ्य विभाग ने मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन से 48 घंटे में जवाब देने को कहा है कि गलत तरीके से नियुक्ति करने के आरोप में उनके खिलाफ क्यों नहीं कार्रवाई की जाये.
दरअसल मुजफ्फरपुर में सिविल सर्जन के स्तर पर कोविड से निपटने और वैक्सीनेशन को सही तरीके से लागू करने के नाम 780 स्वास्थ्यकर्मियों की संविदा पर अस्थायी बहाली की गयी थी. नियुक्ति के 20 दिन बाद मुजफ्फरपुर के डीएम ने मामले की जांच करायी. जांच में पाया गया कि नियुक्ति में बड़े पैमाने पर गडबड़ी की गयी है. जांच रिपोर्ट आने के बाद दो दिन पहले डीएम ने सारी नियुक्ति को रद्द करने का आदेश दिया. सिविल सर्जन के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा भी कर दी. लेकिन नियुक्ति रद्द होने के बाद बहाल किये गये कर्मचारियों ने भारी हंगामा खड़ा कर दिया. शुक्रवार को उन्होंने जमकर हंगामा किया. इसके बाद सिविल सर्जन ने उन्हें फिर से बहाल करने का आदेश जारी कर दिया. मुजफ्फरपुर में हुए इस भर्ती घोटाले को लेकर पूरे स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मचा था.
स्वास्थ्य विभाग का आदेश
स्वास्थ्य विभाग के ओएसडी आनंद प्रकाश की ओऱ से जारी पत्र में कहा गया है कि राज्य सरकार ने कोविड महामारी से निपटने के लिए सिविल सर्जन औऱ मेडिकल कॉलेज अस्पतालों के अधीक्षक के तीन महीने के लिए लोगों को बहाल करने का निर्देश दिया था. बहाली करने से पहले ये सुनिश्चित कर लेना था कि नियुक्ति बेहद जरूरी है औऱ उसके बैगर काम नहीं चल सकता. सरकार ने ये भी कहा था कि ये काम जहां तक संभव हो आउटसोर्सिंग के जरिये किया जाना चाहिये.
लेकिन मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी ने 16 जून को पत्र लिख कर ये जानकारी दी है कि जिले में सिविल सर्जन द्वारा डाटा इंट्री ऑपरेटर औऱ दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों की नियुक्ति में सरकारी नियमों का पालन नहीं किया गया. इसमें कई तरह की गड़बडी की गयी. सिविल सर्जन ने पहले नियुक्ति की, फिर डीएम के आदेश पर उसे रद्द किया औऱ फिर से उन्हीं लोगों को काम पर रख लिया.
स्वास्थ्य विभाग ने अपने आदेश में सिविल सर्जन द्वारा की गयी नियुक्ति को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है. विभाग ने जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर सिविल सर्जन से 48 घंटे के भीतर ये जवाब मांगा है कि उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जाये.
हम आपको बता दें कि मुजफ्फरपुर में हुई इस नियुक्ति में बड़े पैमाने पर खेल हुआ था. सिविल सर्जन ने नियुक्ति में लोजपा की सांसद वीणा देवी औऱ जेडीयू के निलंबित विधान पार्षद दिनेश सिंह पर गंभीर आऱोप लगाये थे. मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन एस के चौधरी ने मीडिया के सामने इस पूरे मामले का राज खोला था. सिविल सर्जन की जुबानी ही इस बहाली में हुए खेल की कहानी सुनिये
“माननीय विधान पार्षद दिनेश सिंह ने 5 लोगों को बहाल करने की सिफारिश की थी. मैंने उन सभी पांच लोगों को नियुक्ति कर लिया. सांसद वीणा देवी की भी सिफारिश आयी थी दो लोगों के लिए. उनको भी रख लिया गया. फिर भी पता नहीं क्यों जिला परिषद की बैठक में दिनेश सिंह ने इस बहाली में गडबड़ी का आरोप लगाया. उन्होंने डीएम को चिट्ठी लिख कर इस मामले की जांच कराने को कहा. उनके पत्र के आधार पर ही इस मामले की जांच करायी गयी औऱ नियुक्ति को रद्द करने का आदेश जारी कर दिया गया.”
मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन ने कहा था कि कोरोना से निपटने औऱ वैक्सीनेशन को गति देने के लिए राज्य स्वास्थ्य मुख्लायल से उन्हें तीन महीने के लिए संविदा पर कर्मचारियों को रखने का निर्देश मिला था. उन्होंने उसी आदेश के आलोक में कर्मचारियों को रखा था. उस बहाली में विधान पार्षद दिनेश सिंह औऱ उनकी सांसद पत्नी वीणा देवी का पूरा ख्याल रखा गया. फिर भी उन्होंने शिकायत कर दी.
इस मामले में दिनेश सिंह का नाम आने से मामला दिलचस्प हो गया था. पहले हम आपको बता दें कि दिनेश सिंह हैं कौन. दिनेश सिंह जेडीयू के विधान पार्षद हैं. पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान उन्हें पार्टी विरोधी काम करने के आऱोप में जेडीयू से निलंबित किया गया है. उनकी पत्नी वीणा देवी लोजपा की सांसद है. सवाल ये है कि जेडीयू से निलंबित विधान पार्षद दिनेश सिंह इतने पावरफुल कैसे हो गये कि उनकी सिफारिश पर बहाली की गयी और फिर उनकी ही सिफारिश पर जांच कर सारी नियुक्ति को रद्द कर दिया गया.
सवाल ये भी उठ रहा कि क्या लोजपा में जो टूट हुई वह पहले से फिक्स था. दिनेश सिंह जेडीयू से निलंबित होने के बावजूद बिहार के पावर सेंटर के नजदीक थे. इसका अंदाजा मुजफ्फरपुर के सरकारी अधिकारियों को भी थी. तभी उनकी हर सिफारिश मानी जा रही थी. दिनेश सिंह पहले से ही काफी विवादित रहे हैं. लेकिन शुरू से ही ये माना जाता रहा है कि वे नीतीश कुमार से डायरेक्ट हैं. लिहाजा मुजफ्फरपुर जिले में सरकारी अमले पर उनती तूती बोलती रही है. लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद उनकी पकड कमजोर हो गयी थी. हालांकि पिछले एक महीने से दिनेश सिंह फिर से पावर में दिख रहे थे. लोजपा के सूत्र बताते हैं कि पार्टी में जो टूट हुई है उसमें सबसे मुखर दिनेश सिंह और उनकी सांसद पत्नी वीणा देवी ही रहीं हैं. तो क्या इस खेल से होने वाले लाभ को दिनेश सिंह पहले से उठा रहे थे.
हम नेता पर भी आरोप
उधर मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन इस मामले में हम के जिलाध्यक्ष शरीफुल हक पर भी गंभीर आरोप लगा रहे हैं. उनका आऱोप है कि हम के जिलाध्यक्ष ने अपने पांच लोगों की नियुक्ति के लिए लगातार दवाब बनाया. जब उनकी सिफारिश पर नियुक्ति नहीं हुई तो उन्होंने बखेड़ा किया. एक फर्जी ऑडियो क्लीप वायरल किया, जिससे लगा कि नियुक्ति में भारी घोटाला हुआ है. सिविल सर्जन का कहना है कि उस ऑडियो क्लीप में जिसकी आवाज है उससे उनका कोई लेना देना नहीं है.
Input : first bihar