Darbhanga: दरभंगा को ‘मिथिलांचल का दिल’ कहा जाता है. ये अपने पने गौरवशाली अतीत और प्रसिद्ध के लिए जाना जाता है. देश के राजे-रजवाड़ों में दरभंगा के राजाओं का अपना ही अलग ही स्थान था. इन्ही राजाओं में दरभंगा राज के आखिरी महाराज कामेश्वर सिंह (Maharaj Kameshwar Singh) अपनी शान-ओ-शौकत के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते थे. उनसे प्रभावित हो कर ही अंग्रेजों ने उन्हें महाराजाधिराज की उपाधि दी थी. आज उनका जन्मदिन हैं. तो आइए जानते हैं इस राजपरिवार से जुड़ी कुछ और विशेष बातें:
शिक्षा के क्षेत्र में दिया है अहम योगदान
दरभंगा महाराज ने शिक्षा के क्षेत्र में अहम योगदान दिया है. उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए 50 लाख रुपए का दान दिया था. इसके अलावा पटना में बना दरभंगा हाउस उन्होंने पटना विश्वविद्यालय को दान में दे दिया थे. कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रयाग विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण में भी उन्होंने आर्थिक मदद दी है.
आप को जानकर हैरानी होगी कि महाराजा कामेश्वर सिंह ने दरभंगा का अपना महल ‘आनंद बाग पैलेस’ और पुस्तकालय संस्कृत विश्वविद्यालय को दे दिया था. ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय और संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा राज के भवनों में ही संचालित हो रहे हैं.
प्राइवेट प्लेन के थे मालिक
दरभंगा राज की शानों -ओ-शौकत पूरे देश में जानी जाती थी. इस राज परिवार के पास अपना प्राइवेट प्लेन भी था. इसके अलावा दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त दरभंगा महाराज ने एयरफोर्स को तीन फाइटर प्लेन भी दिए थे.
घर तक चलती थी ट्रेन
दरभंगा राज के वैभव का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते है कि बिहार की पहली ट्रेन जो समस्तीपुर से चली थी, उसका अंतिम स्टेशन महाराजा कामेश्वर सिंह के निवास स्थान नरगोना पैलेस था. नरगोना पैलेस के ठीक बगल में स्टेशन का प्लेटफार्म आज भी है. वहीं, बिहार में पहली रेल पटरी 1874 में दरभंगा महाराज की कोशिश और दान से ही बनी थी.
Source : Zee News