1970- 80 के दशक में बिहार में शादी की एक नए प्रचलन की शुरुआत हुई जिसे नाम दिया गया पकड़ौआ विवाह ( Pakdaua Marriage). पकड़ौआ, अंगिका बोली जो बिहार के मुंगेर, भागलुपुर, बांका, जमुई, खगड़िया और बेगूसराय में बोली जाती है का शब्द है. पकड़ौआ विवाह नाम से ही पता चलता है पकड़ के जबरदस्ती विवाह करा देना. मतलब ‘जबरिया जोड़ी’ बना देना. इसकी शुरुआत 70- 80 के उस दौर में हुई, जब जयप्रकाश नारायण ने बिहार से संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था और ‘जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो’ का नारा दिया था. बिहार से जाति तो नहीं टूटी, दहेज तो नहीं छूटा, लेकिन इस दौड़ में एक कुप्रथा ने जरूर जन्म लिया. पकड़ौआ विवाह का.

वैसे पकड़ौआ विवाह की शुरुआत कहां से हुई, कब हुई? यह ठीक- ठाक बता पाना मुश्किल है. लेकिन इसका केंद्र बिहार का बेगूसराय जिला रहा है. जहां पकड़ौआ विवाह के सबसे ज्यादा मामले सामने आए. इसके साथ ही आसपास के जिलों में भी इसका प्रचलन रहा है. बेगूसराय से सटे पटना जिले के मोकामा, पंडारख, बाढ़, बख्तियारपुर में भी खूब पकड़ौआ विवाह हुए हैं.

पकड़ौआ विवाह का सूत्रधार, रिश्तेदार

पकड़ौआ विवाह का सूत्रधार परिवार, रिश्तेदार और दोस्त होता है जो किसी पढ़े-लिखे और धन-संपत्ति. और रोजगार से संपन्न शादी योग्य युवक का अपहरण करवाने और फिर शादी कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऐसे लोग अपनी इस कृत्य पर कहते हैं बेटी का विवाह कराना पुण्य का काम है. पकडौआ विवाह के लिए पहले अपहृत लड़के से मनुहार करते हैं, लड़की सर्वगुण संपन्न है, बहुत खूबसूरत है का लालच देते हैं. और तब भी जब बात नहीं बनती है तो फिर लड़के को डराया धमकाया जाता है. हथियार का डर दिखाया जाता है. जान से मारने की धमकी दी जाती है. पिटाई भी की जाती है.

वीडियो भेजकर शादी की सूचना

कई बार तो लड़के को इतना पीटा जाता है कि अस्पताल ले जाने की नौबत आ जाती है. इसके बाद लड़का मजबूरी वश जबरिया विवाह स्वीकार कर लेता है. फिर शादी का वीडियो लड़के के मां बाप को भेज दिया है जाता है और कहा जाता है लो जी हो गई आपके बेटे की शादी. शादी कराने वाले इन दबंग रिश्तेदारों की नजर पहला बच्चा होने तक दूल्हा और उसके परिजनों पर रहता है.

कभी पकड़ौआ विवाह का खौफ था

हालांकि समय के साथ इसके मामलों में कमी आई है. लेकिन एक दौर था जब पकड़ौआ विवाह का खौफ हुआ करता था. 1970 से 1990 के दशक में किसी युवक की अगर अच्छी नौकरी लगती तो घर वाले हमेशा अलर्ट रहते थे. उन्हें हमेशा डर रहता था कि कहीं उसका पकड़ुआ बियाह ना करा दिया जाए. बेगूसराय के बीहट और मटिहानी में इसका सबसे ज्यादा खौफ था. तब कहा जाता था कि यहां आने वाले बारात में युवा और शादी योग्य लड़के नहीं आते थे क्योंकि इनपर शादी कराने वाले दंबगों की नजर होती थी. शादी के सीजन में तो इसे कराने वाले ज्यादा एक्टिव रहते थे. कई वार तो बारात आने वाले गांव में पकडौआ विवाह की तैयारी भी रहती थी.

पकड़ौआ विवाह क्यों

पकडौआ विवाह की सबसे बड़ी वजह दहेज प्रथा बताई जाती है. कई बार एक से ज्यादा बेटियों का बाप जब अपनी बेटी की शादी मोटी दहेज देकर योग्य लड़के से शादी नहीं करा पाता है तब वह पकडौआ विवाह का सहारा लेने के लिए मजबूर हो जाता है. कई बार यह भी देखा गया कि लड़की वाले के साधन संपन्न होने के बाद भी अच्छे लड़के की चाह में बेटी का पकडौआ विवाह का करा देते हैं. तो वहीं इसकी एक वजह लड़कियों की अशिक्षा भी है.

ज्यादातर मामलों में कानूनी कार्रवाई नहीं

एक अनुमान के मुताबिक बिहार में होने वाले 90 प्रतिशत से ज्यादा पकडौआ विवाह सफल होते हैं. शादी के बाद जबरन ही सही, कुछ दिन दुल्हा-दुल्हन के साथ रहने से उन दोनों के बीच मानसिक रूप से पति-पत्नी का रिश्ता स्थापित हो जाता है. तो वहीं परिवार वालों को सामाजिक दबाव में झुकना पड़ता है. कुछ मामले थाने में भी जाते हैं और अपहरण का केस दर्ज होता है. लेकिन कुछ घंटों तक अगवा रहने के बाद जब दुल्हे को दुल्हन के साथ भेज जिया जाता है तो कानूनन ज्यादा कुछ मामला नहीं बनता है.

पुलिस नहीं मानती है इसे अपराध !

तो वहीं पुलिस भी दो परिवारों के बीच का मामला समझकर इसपर ज्यादा कुछ नहीं करती हैं. लेकिन ऐसे भी कुछ मामले हैं जिसमें शादी के बाद लड़के ने इसके खिलाफ आवाज उठाया और कानून की मदद ली तो उन्हें इंसाफ मिला. इंजीनियर विनोद कुमार का ऐसा ही मामला है. विनोद कुमार की जबरन शादी 2017 में बाढ़ क्षेत्र में करा दी गई थी. जिसके बाद विनोद ने इस शादी को मानने से इनकार कर दिया. और परिवार न्यायालय में शादी की वैधता को चुनौती दी. कोर्ट ने 2019 में इस शादी को शादी को अमान्य ठहरा दिया.

कुरीति बाद में धंधा भी बन गया

पकडौआ विवाह की कुरीति बिहार के कुछ जिलों में दबंगों के लिए धंधा भी बन गया. यहां पैसे लेकर जबरिया शादी कराए जाने लगे. डॉक्टर, इंजीनियर, बैंककर्मी, रेलवेकर्मी के रेट तय होने लगे. अगर कोई बैंककर्मी दूल्हा 20 लाख रुपये दहेज मांग रहा है तो दबंग दो लाख लेकर पकडौआ विवाह करा देते हैं. लड़की वालों को शादी में होने वाले धूम-धाम का भी खर्च बच जाता है. शुरूआती दिनों में दबंग लड़की की शादी कराना सामाजिक काम मानते थे. तब पकडौआ विवाह के बाद जब लड़की का घर बस जाता था तो लड़की वाले उन्हें खुश होकर कुछ पैसे इनाम के तौर पर देते थे जो बाद में डिमांड बन गया.

बिना इच्छा जाने ब्याह दी जाती है बेटी ?

पकड़ौआ विवाह का सबसे ज्यादा नुकसान लड़की को होता है. बेटी को उसकी इच्छा पूछे बिना मां-बाप जबरन किसी के साथ शादी करा देते हैं. जिसके बाद ससुराल वाले उसे दिल से शायद ही अपनाते हैं. अगर अपनाते हैं तो भी उन्हें ताउम्र ताने सुनने पड़ते हैं. तो वहीं लड़का भी ऐसी शादी के बाद मानसिक रूप से परेशान हो जाता है. कई बार वह दिल से पत्नी को स्वीकार नहीं कर पाता है.

Source : Tv9 bharatvarsh

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