पटनाः Kahalgaon Bihar Kashi in Bhagalpur: इस वक्त पीएम मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में हैं. वह सोमवार को यहां काशी विश्वनाथ मंदिर के नए भव्य कॉरिडोर का उद्घाटन कर रहे हैं. देशभर में काशी विश्वनाथ मंदिर की धूम है. श्रद्धालुओं के लिए मंदिर की आस्था प्राचीन काल से है और इस क्षेत्र की महिमा बताने वाली कई कहानियां लोक प्रसिद्ध हैं, लेकिन एक रहस्य ऐसा भी है जो आप नहीं जानते हैं. रहस्य ये है कि अगर जौ अनाज के बराबर जमीन कम नहीं पड़ी होती तो आज काशी उत्तर प्रदेश में नहीं बिहार में होती. है न दिलचस्प कथा. 

यह है अद्भुद कथा
दरअसल, ये कथा सतयुग के बाद के काल की है. देवी सती के दक्ष यज्ञ में भस्म हो जाने के बाद महादेव का विवाह पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती से हुआ. महादेव का निवास स्थान कैलाश भी इसी हिमालयी क्षेत्र का हिस्सा था. इससे देवी पार्वती को वहां कैलाश में रहने से संकोच होता था.

एक दिन महादेव शिव को यह बात पता चली. उन्होंने पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए कैलाश के ही बराबर, त्रिखंड पर स्थित और इसी तरह ध्यान योग के लिए उचित स्थान का चयन करने का निर्देश दिया. 

नारद और विश्वकर्मा ने खोजी जमीन
देवर्षि नारद और देव शिल्पी विश्वकर्मा और वास्तुकार, वास्तुपुरुष धरती पर ऐसे उचित स्थान की खोज करने लगे. शर्त ये थी कि गंगा किनारे के वही स्थान चयनित किए जाएं जहां देवी गंगा उत्तरवाहिनी हो और स्थान सर्वथा पवित्र हो.

पवित्रता वाले बिंदु को ध्यान में रखते हुए ऐसे स्थान को खोजा गया जो तप-साधना से पवित्र रहा हो. ऐसे में आज के बिहार का कहलगांव हर तरह से सटीक मिला. यहां ऋग्वैदिक काल में ऋषि कोहल ने कठिन साधना की थी. 

नहीं पूरी हो सकी शर्तें
महर्षि वशिष्ठ ने यहीं बैठकर ब्रह्म तपस्या की थी, जिससे के बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें रघुकुल का कुलगुरु बनने का वरदान दिया. इसी कुल में भगवान श्रीराम ने जन्म लिया. वास्तु पुरुष ने बताया कि इस क्षेत्र में देवी गंगा उत्तरवाहिनी भी हैं. इस तरह भगवान शिव की दी गई तीन शर्तों में से दो शर्तें तो पूरी हुईं. यह दो शर्तें प्राचीन काल की चिताभूमि जिसे आज देवघर और वैद्यनाथ धाम कहते हैं वह भी पूरी करता था. लेकिन शक्तिपीठ की स्थापना के कारण यहां महादेव और पार्वती का निवास नहीं हो सकता था. 

एक जौ जमीन पड़ गई कम
अब आखिरी शर्त बचती थी, जमीन के माप की. अब नारद और देव शिल्पी विश्वकर्मा ने कहलगांव की जमीन को नापना शुरू किया. लेकिन यह भूमि कैलाश की माप से जौ भर कम रह गई. ऐसे में विश्वकर्मा ने इसे खारिज कर दिया और उत्तरवाहिनी गंगा, तप साधना स्थली और कैलाश के माप वाली जमीन के रूप में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी की स्थापना हुई. इस तरह बिहार में बसते-बसते काशी उत्तर प्रदेश में जा बसी. 

यहां है विक्रमशिला विश्वविद्यालय के खंडहर
हालांकि कहलगांव का महत्व इससे कम नहीं हुआ है. यहीं पर स्थित है संसार प्रसिद्ध विक्रमशिला विश्वविद्यालय के प्राचीन खंडहर, जिसमें किसी 13वीं शताब्दी के पहले तक 10 हजार छात्र छात्रावास में रहकर तंत्र, आध्यात्म, वेदांग, शास्त्र, उपनिषद, विज्ञान, अर्थशास्त्र और राजनीति का ज्ञान प्राप्त करते थे. इसके प्रमुख प्रवेशद्वार पर ही छात्रों को कठिन प्रवेश परीक्षा से गुजरना होता था और चौकीदार ही अयोग्य छात्रों को वापस भेज दिया करते थे. 

गुप्त काशी नाम से है मशहूर
पटना से 300 किमी दूर स्थित भागलपुर क्षेत्र के कहलगांव को पुराणों में भी गुप्त काशी कहा गया है. यहां महर्षि वशिष्ठ ने विश्वेश्वर के रूप में महादेव की पूजा की थी, जो आज बटेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध है. यहां दुर्वासा ऋषि की तपस्थली भी रही है और केले के पेड़ का जन्म भी इसी क्षेत्र से माना गया है. 

Source : Zee news

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