पटना. बिहार एनडीए (NDA) में सीट बंटवारे के बाद मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) उर्फ सन ऑफ मल्लाह की पार्टी वीआईपी (VIP) को बीजेपी के कोटे की 11 सीटें मिली हैं. पिछले लोकसभा चुनाव के समय मुंबई में अपने जमे-जमाए कारोबार को छोड़कर मल्लाह समुदाय के उत्थान के लिए आए मुकेश सहनी इस बार अधिक सीटों की उम्मीद लगाए थे. महागठबंधन (Mahagathbandhan) में दाल नहीं गली, तो एनडीए में चले आए. राजग में आकर उन्होंने दो अंकों में सीटें मिलने को लेकर संतुष्टि जताई. साथ ही कहा कि एनडीए में आकर उन्हें ‘सम्मान’ मिला है. लेकिन वीआईपी को मिली 11 सीटों पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि 2015 के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में इनमें से 7 सीटों पर बीजेपी (BJP) को हार मिली थी.

11 में से सिर्फ एक विधानसभा सीट सुगौली पर ही बीजेपी के उम्मीदवार कब्जा जमा पाए थे.

2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए में शामिल होने के बाद मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी को कुल 11 सीटें दी गई हैं. इनमें बोचहा, सुगौली, सिमरी बख्तियारपुर, मधुबनी, केवटी, साहेबगंज, बलरामपुर, अलीनगर, बनियापुर, गौड़ा बौराम और ब्रह्मपुर शामिल है. इन सीटों पर 2015 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो सुगौली से बीजेपी को जीत मिली, लेकिन 7 सीटों पर पार्टी दूसरे नंबर पर रही. वहीं, 11 में से 3 सीटें जेडीयू के खाते में आई, एक सीपीआई (ML) और बाकी 6 सीटों पर आरजेडी के उम्मीदवारों ने शानदार जीत दर्ज की थी.

6 सीटों पर आरजेडी को जीत
2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मधुबनी, केवटी, साहेबगंज, बलरामपुर, अलीनगर, बनियापुर और ब्रह्मपुर सीट पर करारी हार का सामना करना पड़ा था. इनमें से अधिकतर सीटों पर लालू और नीतीश के महागठबंधन के उम्मीदवारों ने शानदार जीत दर्ज की थी. इस बार के चुनाव में ये सीटें वीआईपी को दी गई हैं, जहां से पार्टी के उम्मीदवार एक बार फिर कड़े मुकाबले में महागठबंधन के प्रत्याशी के सामने होंगे. वहीं, इस बार लोजपा चूंकि एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ रही है. ऐसे में ‘सन ऑफ मल्लाह’ के लिए लोकसभा चुनाव की ही तरह, विधानसभा का सियासी रण भी आसान नहीं होगा.आपको बता दें कि मुकेश सहनी उर्फ सन ऑफ मल्लाह (Son of Mallah) ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राजनीति में एंट्री ली थी. मुंबई में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अच्छा-खासा कारोबार चला रहे मुकेश सहनी, मल्लाह समुदाय से आते हैं और इस समाज के पिछड़ापन को दूर करने के मकसद से वो चुनाव मैदान में उतरे थे. लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में होने का उन्हें फायदा नहीं मिला, इसके बावजूद सालभर तक वो तेजस्वी यादव, कांग्रेस और अन्य दलों के गठबंधन के साथ बने रहे. मगर 2020 के विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद जब महागठबंधन में उन्हें मन-मुताबिक सीटें नहीं मिलीं, तब उन्होंने एनडीए का दामन थाम लिया.

Input : News18

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