तेज बुखार, सांस फूलना, सर्दी-खांसी यानी कोरोना के पूरे लक्षण हैं, लेकिन आरटी-पीसीआर, एंटीजन या एंटीबाडी से लेकर डेल्टा वैरिएंट तक की जांच रिपोर्ट निगेटिव आ रही है। ऐसे में डाक्टर लक्षणों के आधार पर वायरल फीवर, कोरोना या मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआइएस-सी) मान कर उपचार कर रहे हैं। राजधानी में ऐसे बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ी है। गुरुवार को एम्स में एक 11 वर्षीय बच्ची की मौत भी हो गई। विशेषज्ञ इसके अलग-अलग कारण बता रहे हैं। कुछ का कहना है कि आरटी-पीसीआर जांच में 30 फीसद तक गलत रिपोर्ट आ सकती है तो कुछ का कहना है कि कोरोना के विभिन्न वैरिएंट की पुष्टि करने वाली जांच किट ही अभी विकसित नहीं हुई है।
एक भी कोरोना या एमआइएस-सी का रोगी नहीं
आइजीआइएमएस के चिकित्साधीक्षक डा. मनीष मंडल के अनुसार, उनके यहां कोरोना या एमआइएससी से पीड़ित एक भी बच्चा भर्ती नहीं है। कोरोना जैसे लक्षण लेकर कई बच्चे आते हैं लेकिन आरटी-पीसीआर, एंटीजन, एंटीबाडी से लेकर डेल्टा प्लस वैरिएंट की जांच कराने पर भी रिपोर्ट निगेटिव आ रही है। कोरोना के विभिन्न प्रकार के वैरिएंट की जांच के लिए किट नहीं होना रिपोर्ट निगेटिव आने का कारण हो सकता है। चूंकि, बच्चे में लक्षण कोरोना और एमआइएस-सी जैसे होते हैं, इसलिए डाक्टर उसी की तरह उनका उपचार करते हैं।
कोई भी जांच विधि सौ फीसद सटीक नहीं
एम्स पटना के कोरोना नोडल पदाधिकारी डा. संजीव कुमार के अनुसार कोरोना जैसे लक्षण कई अन्य वायरल रोगों में भी हो सकते हैं। लेकिन, आइसीएमआर गाइडलाइन के अनुसार कोरोना रोगी उन्हें ही माना जाएगा जिनमें आरटी-पीसीआर या एंटीजन किट जैसी माइक्रोबायोलाजिकल जांच से इसकी पुष्टि होगी। हालांकि, यह भी सच है कि गोल्ड स्टैंडर्ड मानी जाने वाली आरटी-पीसीआर जांच में भी 30 फीसद तक रिपोर्ट निगेटिव आ सकती है। तकनीकी कारणों से हर जांच विधि में गलत रिपोर्टिंग की आशंका बनी रहती है।
लक्षण के आधार पर इलाज सबसे बेहतर तरीका
पीएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डा. एके जायसवाल के अनुसार, दुनिया में एंटीवायरल दवाओं पर शोध बहुत कम हुआ है। वायरस जनित रोगों की वैक्सीन तो बनी हैं लेकिन उनके लिए कोई सटीक एंटीवायरल दवा नहीं बनी है। बैक्टीरियाजनित रोगों के उपचार को बनीं एंटीबायोटिक दवाएं इनमें बहुत कारगर नहीं होती हैं। ऐसे में तेज बुखार पर उसे कम करने की दवा, डिहाइड्रेशन रोकने को ओआरएस समेत लक्षण के आधार पर उपचार करना सबसे बेहतर तरीका है। घातक परिणामों से बचने के लिए अभिभावकों को जल्द से जल्द नजदीकी डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
Source: Dainik Jagran