बिहार पुलिस एक बार फिर अपने अजीबोगरीब कारनामों को लेकर सुर्खियों में है। इस बार मामला पूर्वी चम्पारण जिले के कुंडवा चैनपुर थाने का है, जहां पुलिस ने पीड़ित परिवार को ही अपराधी ठहरा दिया। जिस परिवार के घर पर बमबारी और लूटपाट हुई, उसी के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर दी, जबकि पीड़ितों की शिकायत को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब यह मामला बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष पहुंच चुका है, जहां पीड़ित परिवार की ओर से मानवाधिकार अधिवक्ता एस.के. झा पैरवी कर रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
पूर्वी चम्पारण के कुंडवा चैनपुर थाना क्षेत्र के जटवलिया गांव निवासी मालती देवी और उनके पति कपिल देव दुबे पिछले दो महीनों से अपने परिवार सहित घर से बाहर थे। 13 अप्रैल की रात करीब 11 बजे, उनके ही गांव के कुछ असामाजिक तत्वों ने उनके घर पर धावा बोल दिया। पीड़ित दंपति के अनुसार, हमलावरों ने पहले उनकी पोती की शादी के लिए रखे गए जेवर, कपड़े, बर्तन और अन्य कीमती सामान लूट लिए। इसके बाद, उन्होंने घर में बम ब्लास्ट कर तोड़फोड़ की।
जब दंपति को इस घटना की जानकारी मिली, वे तुरंत घर लौटे और कुंडवा चैनपुर थाने में नामजद आरोपियों के खिलाफ लिखित शिकायत दर्ज कराई। लेकिन, हैरानी की बात यह है कि पुलिस ने उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई करने के बजाय, उल्टे पीड़ित परिवार के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज कर दी। पीड़ितों का आरोप है कि पुलिस ने यह कदम प्रभावशाली आरोपियों के दबाव में उठाया।
पुलिस की उदासीनता और पीड़ितों का दर्द
पीड़ित दंपति ने इस अन्याय के खिलाफ जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) मोतिहारी से भी गुहार लगाई, लेकिन वहां से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली। बुजुर्ग दंपति का कहना है कि पुलिस की इस कार्रवाई ने उन्हें झूठे मुकदमे में फंसाकर और अपमानित किया है। अब उनके पास मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
मानवाधिकार आयोग में मामला, अधिवक्ता ने जताई उम्मीद
पीड़ित परिवार की ओर से मानवाधिकार अधिवक्ता एस.के. झा ने बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। झा ने इस मामले को मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन का मामला बताते हुए कहा, “यह घटना बिहार पुलिस की कार्यशैली पर गहरा सवाल उठाती है। पुलिस ने पीड़ितों को ही अपराधी बनाकर न्याय की धज्जियां उड़ा दी हैं। हमें पूर्ण विश्वास है कि मानवाधिकार आयोग इस मामले की उच्चस्तरीय जांच करवाएगा और पीड़ित परिवार को न्याय मिलेगा।
बिहार पुलिस की कार्यशैली पर सवाल
यह पहला मौका नहीं है जब बिहार पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठे हैं। इस घटना ने एक बार फिर पुलिस की निष्पक्षता और संवेदनशीलता को कटघरे में खड़ा कर दिया है। पीड़ित परिवार की आपबीती न केवल उनके साथ हुए अन्याय को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि आम नागरिकों को न्याय के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है।
आगे क्या?
फिलहाल यह मामला मानवाधिकार आयोग के समक्ष विचाराधीन है। सभी की निगाहें अब आयोग के फैसले पर टिकी हैं। क्या पीड़ित परिवार को इंसाफ मिलेगा, या बिहार पुलिस का यह कारनामा एक और नजीर बनकर रह जाएगा? यह समय ही बताएगा।