मुजफ्फरपुर, नेताओं की बदलती दलगत आस्था और मौसमी उछल-कूद सियासी समीकरणों को उलझा रही। चुनाव से पहले टिकट कटने की आशंका या मिलने की संभावना में पार्टी बदलने की आपाधापी है। सूबे में छोटे-बड़े अब तक करीब दो दर्जन नेता पाला बदल चुके हैं। इनमें विधायक भी हैं। पिछली बार निर्दलीय विधायक भी दलों का दामन थाम चुके हैं। मिथिलांचल और तिरहुत भी इसमें पीछे नहीं, क्योंकि दल बदलने की शुरुआत मुजफ्फरपुर से शुरू हुई थी। दोनों प्रमंडलों में अब तक आधा दर्जन से अधिक नेता इधर-उधर हो चुके हैं। यह स्थिति तब है, जब सीटों की घोषणा नहीं हुई है।
मुजफ्फरपुर की कई सीटों पर पेच
पिछले चुनाव में भाजपा गायघाट विधानसभा सीट पर दूसरे नंबर पर थी। राजद के महेश्वर प्रसाद यादव को 67,313 मत प्राप्त हुए, जबकि भाजपा की वीणा देवी को 63,812 वोट मिले थे। वीणा अब लोजपा से वैशाली सांसद हैं, जबकि विधायक महेश्वर प्रसाद यादव जदयू के हो चुके हैं। सीटिंग विधायक होने के नाते जदयू इस सीट पर दावेदारी कर सकता है। हालांकि, पिछले चुनाव के आधार पर यहां भाजपा की भी नजर है। कुछ स्थानीय नेता दावेदारी कर रहे। मुजफ्फरपुर की सकरा सीट को लेकर भी पेच है। कांटी से निर्दलीय विधायक अशोक कुमार चौधरी वहां से जदयू के टिकट पर लडऩा चाह रहे हैं, जबकि पिछले चुनाव में भाजपा के अर्जुन राम दूसरे नंबर पर रहे थे। ऐसे में उनकी दावेदारी भी प्रबल मानी जा रही है। बोचहां की निर्दलीय विधायक बेबी कुमारी अब भाजपा के साथ हैं तो इस सीट से उनकी दावेदारी भी माथापच्ची करा सकती है।
राजद की जड़ जमाने वाले अब जदयू के साथ
एक जमाने में लालू प्रसाद यादव के लिए वैशाली की राघोपुर विधानसभा सीट छोड़ देने वाले राजद के पुराने दिग्गज भोला राय ने पार्टी छोड़ दी। फिलहाल, वे जदयू से जुड़ चुके हैं। राघोपुर सीट को लालू परिवार का गढ़ माना जाता है, लेकिन वहां राजद की जड़ें जमाने का श्रेय भोला बाबू को ही है। उनकी नाराजगी और पार्टी से किनारा तेजस्वी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।
दरभंगा की केवटी सीट पर भी फंस सकता पेच
पूर्व केंद्रीय मंत्री अली अशरफ फातमी के बेटे और दरभंगा की केवटी विधानसभा सीट से विधायक फराज फातमी भी राजद से अलग हो जदयू का दामन थाम चुके हैं। वर्ष 2015 में राजद-जदयू साथ थे तो यह सीट राजद के खाते में आई थी। फातमी ने भाजपा के अशोक यादव को परास्त किया था। वर्ष 2010 में यह ठीक इसके विपरीत था। तब, अशोक यादव ने उन्हें हरा दिया था। वर्ष 2005 में भी अशोक यादव ने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी। दूसरे नंबर पर राजद था। पिछले तीन चुनावों में भाजपा ने दो बार जीत दर्ज की है, जबकि एक बार मुख्य प्रतिद्वंद्वी रही। ऐसे में इस सीट पर उसकी नजर रहेगी। लेकिन, मौजूदा विधायक फातमी के जदयू में आने से पेच फंस सकता है।
इनपुट : जागरण (अजय पाण्डेय)