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मुजफ्फरपुर, राजनीतिक जीवन में रमई राम ने समय-समय पर पार्टियां भी खूब बदलीं। 1980 का चुनाव जनता पार्टी के टिकट पर लड़े और विजयी हुए। 1985 में लोकदल, तो 1990 और 1995 में जनता दल से चुनाव लड़े। वर्ष 2000 और वर्ष 2005 के फरवरी व अक्तूबर के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल से लड़े। 2010 में रमई राम ने जदयू का दामन थामा और जदयू के टिकट पर ही विधानसभा चुनाव लड़े और जीते।

2009 के लोकसभा चुनाव में रमई राम राजद के टिकट पर हाजीपुर से लड़ना चाह रहे थे, लेकिन राजद ने उन्हें टिकट नहीं दिया उसके ‌बाद वह कांग्रेस के टिकट पर गोपालगंज से लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन चुनाव जीत नहीं पाए। दूसरे दल से लोकसभा चुनाव लड़ने के कारण उन्हें विधानसभा से इस्तीफा देना पड़ा था। इस कारण बोचहां विधानसभा सीट उस समय खाली हो गयी।

आखिरी चुनाव में हुई हार

2009 के ही सितंबर माह में फिर से बोचहां विधानसभा का चुनाव हुआ जिसमें रमई राम जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन राजद प्रत्याशी मुसाफिर पासवान से वे चुनाव हार गये। छह माह बाद हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में वे मुसाफिर पासवान को हराकर फिर से बोचहां से चुनाव जीत गये। 2015 के विधानसभा चुनाव में रमई राम फिर राजद- जदयू गठबंधन प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े। इधर, एनडीए से लोजपा ने बेबी कुमारी को लड़ाने का फैसला किया, लेकिन अंतिम क्षण में लोजपा ने बेबी कुमारी को दरकिनार कर अनिल साधु को अपना उम्मीदवार बना दिया। बेबी कुमारी भी निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी। इस चुनाव में बेबी कुमारी ने रमई राम को हरा दिया। इसके बाद में चुनाव नहीं लड़ पाए।

वार्ड से शुरू की थी राजनीति बाद में कद्दावर मंत्री की रखी पहचान

मुजफ्फरपुर‌। रमई राम ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत 1969 में वार्ड पार्षद के चुनाव से की थी। तब उन्होंने मुजफ्फरपुर नगरपालिका के चुनाव में वार्ड 13 से चुनाव लड़ा और राम संजीवन ठाकुर (स्वतंत्रता सेनानी) को पराजित किया। 1972 के विधानसभा चुनाव में बोचहां (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़े और विजयी भी हुए। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के उम्मीदवार कमल पासवान से पराजित हो गये। इसके बाद 1980, 1985, 1990, 1995, 2000, 2005 के फरवरी व 2005 के अक्तूबर और 2010 के विधानसभा चुनाव में बोचहां विधानसभा से चुनाव लड़े और विजयी हुए।‌ लालू यादव के मंत्रिमंडल से लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल तक कैबिनेट में रहे ज्यादातर उनके पास भूमि सुधार व राजस्व विभाग ही रहा। इधर अंतिम समय में वह राजद के टिकट से अपनी पुत्री विधान पार्षद डा गीता देवी को लडाना चाहते थे टिकट नहीं मिलने के बाद उन्होंने पाला बदला। फिलहाल मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी में थे।

इनपुट : जागरण

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