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मुजफ्फरपुर, बिहार में इन दिनों शराब बंदी पर घमासान मचा है। सब के निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। नीतीश कुमार ऐसे सफल मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने बारी बारी से सभी दलों को सत्ता का स्वाद चखने का अवसर दिया है। नीतीश कुमार कभी एनडीए की सरकार चलाते हैं तो कभी महागठबंधन की, इंजन वही रहता है डिब्बे बदल जाते हैं। इंजन इतना शक्तिशाली है की बड़े से बड़े डिब्बे को और बड़ी से बड़ी गाड़ी को खींचने की उनमें कुवत है।

सत्ता का स्वाद चखने का सभी को उन्होंने अवसर तो जरूर दिया लेकिन सैद्धांतिक रूप से सभी दलों को जनता की अदालत में निर्वस्त्र कर दिया। अन्य मुद्दों और बातों को छोड़ भी दें तो केवल एक शराब बंदी के विषय पर ही जनता की अदालत में सबको कटघरे में खड़ा कर दिया। यह समझने और जानने की जरूरत है कि एनडीए की सरकार जिसमें भाजपा, सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी थी ने शराब बंदी लागू किया था, तब राजद नेता तेजस्वी यादव ने विपक्ष का नेतृत्व करते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराब माफिया के सरगना हैं।

आज वह नीतीश जी के साथ शराब बंदी की हिमायत में मजबूती से खड़े हैं, जबकि शराब बंदी से प्रभावित होने वाला तबका उन्हीं का मतदाता है। भाजपा अब विपक्ष की भूमिका में है और जम कर नीतीश जी की शराब बंदी को लेकर आलोचना कर रही है। सारण में जहरीली शराब से सौ से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। विपक्ष में बैठी भाजपा मृत परिवार के लोगों को मुआवजा दिलाने के लिए आंदोलन कर रही है। भले ही राजद और भाजपा का स्टैंड बदल गया हो लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज भी अपने निर्णय पर अडिग हैं।

उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि शराब पीकर मरने वालों को कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। वह स्पष्ट कहते हैं कि पियोगे तो मरोगे ही। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस कदम से जहां उनकी नीति और नीयती जाहिर हो गई है वहीं अन्य दलों की पोल खुल गई है कि कैसे सत्ता के लिए उनकी नीतियां बदल जाती हैं। नीतीश कुमार ने मृतकों को मुआवजा का एलान न कर के एक आदर्श कायम किया है।

उन्होंने विपक्ष अर्थात् भाजपा से सदन में कहा कि पहले आप इधर ही समर्थन में बैठे थे, आज, आप कह दीजिए न कि शराब बंदी हटा दें। उन्होंने धर्मों और राष्ट्र पिता का भी हवाला दिया, उन्होंने कहा इस्लाम धर्म में शराब पीना मना है, अन्य धर्म में भी इसके सेवन को अच्छा नहीं माना गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कथन बिल्कुल सही है। यह सच है कि इस्लाम धर्म में शराब हराम (निषिद्ध) है।

लेकिन इस्लाम धर्म की तरह, हिंदू धर्म में शराब पीने पर ऐसी कोई रोक नहीं लगाई गई है, सही मात्रा में लेने पर कुछ हर्बल वाइन को अच्छी दवा के रुप में माना गया है। अतः हिंदू धर्म किसी को भी शराब पीने से पूरी तरह मना नहीं करता है। परन्तु यह भी सच्चाई है कि कोई भी धर्म शराब के सेवन को सही नहीं बताता है, वास्तव में यह विनाश का कारण है।

इस संबंध में एक कहावत मशहूर है कि एक कमरे में शराब की बोतल, एक तलवार और एक खूबसूरत लड़की है, यदि इनमें से एक का चयन के लिए कहा जाय तो हम किसका चयन करेंगे? तलवार का चयन करते हैं तो एक अपराध हत्या का होगा, यदि खूबसूरत लड़की का चयन करते हैं तो एक अपराध बलात्कार का हो सकता है और शराब का चयन करते हैं तो यह हमारे मनोदशा को बिगाड़ देगा, हर वह अपराध हम करेंगे जिसका अवसर मिल जाए। शराब के नशे में खूबसूरत लड़की के साथ बलात्कार जैसा जघन्य कृत्य होगा और फिर सबूत छुपाने के लिए तलवार से उसकी हत्या भी हो सकती है। इसीलिए शराब को इस्लाम में सभी बुराईयों की जड़ (जननी) मानकर इस को हराम (निषिद्ध) करार दिया है।


जहां तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के शराब बंदी का प्रश्न है तो मैं बताऊं कि यह कदम उन्होंने महिलाओं के आन्दोलन से प्रभावित होकर ही लिया था। महिलाएं अपने शराबी पति के हिंशा का रोज शिकार होती थीं। उनके साथ उन्हीं के पति जबरन उनका बलात्कार करते थे, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उनका सौदा तक कर देते थे। घरेलू हिंशा से समाज का स्वरूप बिगड़ गया था। शादी और पार्टियों में शराब का सेवन आम हो गया था, स्थानीय निकाय के चुनाव का यह सबसे प्रभावी हथियार बन गया था, सड़क हादसे और व्याभिचार काफी बढ़ गया था, विवश होकर जनता के दिल की आवाज सुन कर ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराब बंदी जैसा कठोर निर्णय लेने पर विवश हुए.

कठोर इसलिए कहा कि शराब नोशी (सेवन) समाज में काफी गहरी जड़ें जमा चुका था, दूसरे यह कि इसी विभाग से सरकार को सबसे अधिक रेवेन्यू हासिल होती थी जिसका व्यय राज्य के विकास में होता था, इस मोटे रेवेन्यू के अभाव में आज सरकार को केंद्र का मुंह ताकना पड़ता है। जिस जनता की आवाज पर मुख्यमंत्री ने शराब बंदी की थी वही जनता अब आन्दोलन के जरिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साहस को कमजोर कर शराब बंदी के उनके निर्णय को ही प्रभावित कर देना चाहती है।

लेख : मो0 रफी

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