मुजफ्फरपुर, ऑनलाइन डेस्क। ‘मुझे तो अपनों ने लूटा…।’ चिराग पासवान (Chirag Paswan) और लोजपा (LJP) के लिए यह पंक्ति सौ फीसद सही लग रही है। रविवार की देर रात लोजपा में टूट की खबर जैसे ही ब्रेक हुई, बारिश के इस मौसम में भी मुजफ्फरपुर() का राजनीतिक तापमान तेजी से ऊपर चढ़ने लगा। इस पूरे घटनाक्रम के पीछे की राजनीति से लेकर इसके भविष्य की चर्चाएं शुरू हो गईं। क्योंकि इस टूट के पीछे जदयू सांसद ललन सिंह (JDU MP Lalan singh) का नाम आ रहा है। साथ में यह खबर भी आ रही है कि ये बागी सांसद जदयू (JDU) में शामिल हो सकते हैं। इस स्थिति में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की पार्टी की जिला इकाई के अंदर एक अजीब सी बेचैनी महसूस की जा रही है।

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 (Bihar Assembly Election 2020)तक लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party)और उसके सुप्रीमो चिराग पासवान ने एक के बाद एक चाल चली। इसका परिणाम बिहार विधानसभा में जदयू की कम सीटों के रूप में सामने आया, लेकिन उसके बाद से जदयू अपने एक के बाद एक दांव से लोजपा की झोपड़ी को तहस-नहस कर रहा है। पहले सभी जिलाध्यक्षों को तोड़ा, उसके बाद पार्टी के इकलौते विधायक जदयू खेमे के हो गए और अब छह में से पांच सांसदों ने बगावत कर दी है। इसमें पशुपति कुमार पारस, चिराग के चचेरे भाई प्रिंस राज, चंदन सिंह, वीणा देवी और महबूब अली कैसर शामिल हैं। रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस (pashupati kumar paras)इसका नेतृत्व कर रहे हैं। इनको पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi)के मंत्रिमंडल में जदयू कोटे से मंत्री बनाए जाने की भी चर्चा है।

दरअसल, पहले लोजपा की जिला इकाई और बाद में रालोसपा (RLSP)के जदयू में विलय के बाद से ही जदयू की स्थानीय इकाई में सामंजस्य की समस्या चल रही है। अब यदि यह गुट भी जदयू के साथ आ जाता है तो इसमें शामिल नेताओं के समर्थकों को समायोजित करने में परेशानी और बढ़ जाएगी। खासकर वैशाली सांसद वीणा देवी और उनके समर्थकों को। मुजफ्फपुर की पांच विधानसभा सीटें कांटी, मीनापुर, पारू, बरूराज और साहेबगंज वैशाली लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं। यहां वीणा देवी का अपना प्रभाव है। अभी कुछ दिनों पहले ही जदयू के जिलाध्यक्ष मनोज कुमार का एक बयान सुर्खियों में आ गया था जब उन्होंने कहा था कि पार्टी के कुछ नेता उन्हें बिना कोई सूचना दिए आयोजन कर लेते हैं। गुटबाजी से जूझ रही जदयू जिला इकाई इस बदलाव को कैसे झेल पाएगी और इसकी जद में आ रहे नेता कैसे अपना वजूद बचा पाएंगे, इसकी चर्चा तेज हो गई है।

इनपुट : जागरण

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