नए साल में देश के पांच राज्यों में अप्रैल मई में विधानसभा चुनाव होने हैं। ये पांच राज्य पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी (केंद्रशासित प्रदेश) देश की विभिन्न सियासी पार्टियों की किस्मत तय करेंगे। इन पांच राज्यों में से असम में भाजपा, पश्चिम बंगाल में तृणमूल, केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट, तमिलनाडु में एआईएडीएमके और पुडुचेरी में कांग्रेस का शासन है।

पश्चिम बंगाल : ममता को भाजपा से मिल रही टक्कर

तृणमूल कांग्रेस ने 2016 में 294 सीटों में से 211 सीट जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 42 में से 18 सीटें जीतकर सियासी पंडितों को चौका दिया था।

इसके चलते 2021 का विधानसभा चुनाव ममता बनर्जी के लिए काफी मुश्किलों भरा होगा।

केरल : लेफ्ट के सामने सियासी वजूद बचाने की चुनौती

देश में एकमात्र केरल ऐसा राज्य बचा है जहां लेफ्ट सत्ता में है। पिछले चुनाव में लेफ्ट गठबंधन एलडीएफ ने 140 में से 91 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। केरल में एलडीएफ को कांग्रेस के गठबंधन वाले यूडीएफ के साथ भाजपा से भी कई जगहों पर चुनौती मिल रही है।

असम : भाजपा पर पिछला प्रदर्शन बरकरार रखने का दबाव

असम में 2016 में भाजपा ने कांग्रेस को हराकर सत्ता काबिज की और सर्वानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री बने। 2016 में हुए चुनाव में भाजपा ने 126 में से 60 सीटें जीती थी। वहीं भाजपा सहयोगी को असम गण परिषद ने 14 और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट ने 12 सीटें जीती थीं। जबकि कांग्रेस सिर्फ 26 सीटें ही जीत सकी थी।

तमिलनाडु : दशकों बाद बिना करुणानिधि और जयललिता के चुनाव होगा

तमिलनाडु में 2021 में होने वाला चुनाव कई दशकों बाद काफी विशेष होने वाला है। क्योंकि इस बार का चुनाव राज्य के दो सियासी दिग्गज एम करुणानिधि और जे जयललिता के बिना लड़ा जाएगा। पिछले चुनाव में यहां एआईएडीएमके ने 236 में 136 सीटें जीती थीं। जबकि डीएमके को 89 सीट मिली थी। इस बार के चुनाव में दो सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन के भी मैदान में उतरने की संभावना है।

पुडुचेरी : कांग्रेस के सामने भाजपा गठबंधन

पुडुचेरी में डीएमके के साथ गठबंधन में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार है। यहां पर वी नारायणसामी मुख्यमंत्री हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस के गठबंधन को 30 में से 18 सीटों पर जीत मिली थी। जबकि भाजपा और ऑल इंडिया एन आर कांग्रेस को 14 सीटें मिली थी।

2020 में इन नए कानूनों ने चढ़ाया सियासी पारा

सीएए : नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को 12 दिसंबर 2020 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी। इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी) को नागरिकता मिलेगी। लेकिन विपक्ष ने इसमें मुस्लिमों को नहीं शामिल करने पर सवाल उठाया। इसके चलते देशभर में प्रदर्शन हुए। दिल्ली के शाहीन बाग में हुआ प्रदर्शन काफी चर्चा में भी रहा। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद यह प्रदर्शन खत्म हुआ।

लव जिहाद : यूपी और मध्य प्रदेश धर्मांतरण रोधी अध्यादेश के लागू होने पर विपक्ष ने इसपर काफी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। यूपी में धर्मांतरण रोधी अध्यादेश को राज्यपाल ने 27 नवंबर को मंजूरी दे दी। यूपी में धमकी देकर, डराकर या मजबूर करके धर्म परिवर्तन मामले में 5 साल की सजा और 15 हजार रुपये का अर्थदंड है। जबकि मध्य प्रदेश में 5 साल की सजा का प्रावधान है और 25 हजार रुपये का जुर्माना है। इसके साथ कर्नाटक और हरियाणा ने भी धर्मांतरण रोधी कानून लाने का ऐलान किया है।

इनपुट : हिंदुस्तान

3 thoughts on “उठापटक भरा रहेगा 2021, ये पांच राज्य तय करेंगे सियासी पार्टियों की किस्मत”
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