नई दिल्ली: सूरज से निकली तेज तूफान की लहर आज धरती को हिट कर सकती है. इसकी वजह से जीपीएस सिस्टम, सेलफोन नेटवर्क, सैटेलाइट टीवी और पॉवर ग्रिड बंद हो सकते हैं. अमेरिकी सरकार के अंतरिक्ष मौसम पर नजर रखने वाली संस्था ने 26 सितंबर को जियोमैग्नेटिक तूफान (Geomagnetic Storm) के पृथ्वी से टकराने की चेतावनी दी है. यानी किसी भी समय धरती पर कुछ मिनटों के लिए परेशानी खड़ी कर सकती हैं.

कैसे और क्यों आता है जियोमैग्नेटिक तूफान?

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) के मुताबिक, सूर्य की सतह पर बड़े पैमाने के विस्फोट होते हैं, जिसके दौरान कुछ हिस्से बेहद चमकीले प्रकाश के साथ बहुत ज्यादा ऊर्जा छोड़ते हैं, जिसे सन फ्लेयर (sun flare) कहा जाता है. सूर्य की सतह पर होने वाले इस विस्फोट से उसकी सतह से बड़ी मात्रा में चुंबकीय ऊर्जा निकलती है, जिससे सूर्य की बाहरी सतह का कुछ हिस्सा खुल जाता है. इस हिस्से को कोरोनल होल्स (Coronal Holes) कहा जाता है. इन्हीं होल्स से ऊर्जा बाहर की ओर निकलती है, जो आग की लपटों की तरह दिखाई देती है. वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर ये एनर्जी लगातार कई दिनों तक निकलती रहे तो इससे बहुत छोटे न्यूक्लियर पार्टिकल भी निकलने लगते हैं जो ब्रह्मांड में फैल जाते हैं, जिसे जियोमैग्नेटिक तूफान कहा जाता है.

जब ये तूफान धरती से टकराए तो क्या होगा?

सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण ये होता है कि सूर्य की सतह पर किस दिशा में विस्फोट हुआ है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस दिशा में विस्फोट होगा, उसी दिशा में न्यूक्लियर पार्टिकल लिए एनर्जी अंतरिक्ष में ट्रेवल करेगी. ऐसे में यदि विस्फोट की डायरेक्शन धरती की ओर है तो ये ऊर्जा उस पर भी असर डालेगी. वैज्ञानिकों के अनुसार, सूरज से निकलने वाले रेडिएशन से पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बचाता है. धरती के गर्भ से निकलने वाली चुंबकीय शक्तियां जिससे वायुमंडल के आसपास एक कवच बन जाता है, वो इन पार्टिकल्स का रुख मोड़ देता है. लेकिन सौर तूफान के दौरान इस कवच को भेद देते हैं, जिससे पृथ्वी पर बड़ा असर होता है. सोलर तूफान को जी-1 से लेकर जी-5 तक 5 श्रेणियों में बांटा गया है, जिसमें 1 सबसे कमजोर और 5 में नुकसान की सबसे अधिक संभावना होती है.

तेज करंट से उड़ सकते हैं ट्रांसफॉर्मर

नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि सूरज पर उठते तूफानों का असर सैटेलाइट पर आधारित टेक्नोलॉजी पर हो सकता है. सोलर विंड की वजह से धरती का बाहरी वायुमंडल गर्म हो सकता है, जिससे सैटलाइट्स पर असर होता है. इससे जीपीएस नैविगेशन, मोबाइल फोन सिग्नल और सैटलाइट टीवी में रुकावट पैदा हो सकती है. वहीं पावर लाइन्स में करंट तेज हो सकता है जिससे ट्रांसफॉर्मर भी उड़ सकते हैं. हो सकता है कि कुछ देशों में बिजली की सप्लाई बाधित हो जाए. इलेक्टिकल ग्रिड और इंटरनेट पर असर के जरिए इनकी तीव्रता को समझा जा सकता है.

1989 में हुआ था 9 घंटे का ब्लैकआउट

धरती पर सौर तूफान का सबसे भयावह असर मार्च 1989 में देखने को मिला था. तब आए सौर तूफान की वजह से कनाडा के हाइड्रो-क्यूबेक इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन सिस्टम 9 घंटे के लिए ब्लैक आउट हो गया था. इसके बाद 1991 में सौर तूफान की वजह से लगभग आधे अमेरिका में बिजली गुल हो गई थी. लेकिन यह सबसे बड़े तूफान नहीं थे. ऐसा कहते हैं कि सबसे भयावह सौर तूफान 1-2 सिंतबर 1859 में आया था. उसे कैरिंग्टन इवेंट कहा गया था. उस वक्त इतनी बिजली, सैटेलाइट, स्मार्टफोन आदि नहीं थे. इसलिए नुकसान ज्यादा महसूस नहीं हुआ. लेकिन जिस तीव्रता का तूफान उस वक्त आया था, अगर वह वर्तमान में आ जाए तो भारी तबाही मच जाती. कई देशों में पावर ग्रिड बंद हो जाते. सैटेलाइट काम नहीं करते. जीपीएस प्रणाली बाधित होती. मोबाइल नेटवर्क गायब हो जाता. रेडियो कम्युनिकेशन खराब हो जाता.

Source : Zee news

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