“घर लौटना चाहता हूँ…” लीबिया में फंसे प्रो. संजीव की पुकार; NHRC में दायर हुई याचिका

“घर लौटना चाहता हूँ…” लीबिया में फंसे प्रो. संजीव की पुकार; NHRC में दायर हुई याचिका

मुजफ्फरपुर/पटना: बिहार के पटना स्थित राजेंद्र नगर के निवासी प्रोफेसर डॉ. संजीव धारी सिन्हा पिछले कई वर्षों से लीबिया में फंसे हुए हैं और वतन लौटने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। लीबिया की यूनिवर्सिटियों में अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर रहे डॉ. सिन्हा वर्ष 2014 से भारत लौटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भारतीय दूतावास की लापरवाही और वीजा संबंधी जटिलताओं के कारण आज तक वापस नहीं आ पाए।

प्रोफेसर सिन्हा ने हाल ही में मानवाधिकार मामलों के अधिवक्ता एस.के. झा से फोन पर संपर्क कर मदद की गुहार लगाई। इसके बाद अधिवक्ता झा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), नई दिल्ली और बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग, पटना में दो अलग-अलग याचिकाएँ दायर की हैं।




कैसे बढ़ी परेशानी?

• डॉ. सिन्हा वर्ष 2009 में लीबिया गए थे और 2017 तक त्रिपोली यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे। आरोप है कि:

• 2014–15 और 2015–16 में वीजा प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, जिससे उनका स्टे अवैध स्थिति में चला गया।

• 2017 में त्रिपोली विश्वविद्यालय ने 39 माह की जगह केवल 21 माह का ही वेतन दिया, जो वीजा न होने के कारण हवाला की श्रेणी में आ सकता है।

• अलमरगिब यूनिवर्सिटी में कार्य के दौरान भी उन्हें वैध वीजा नहीं मिला, जिससे पूरी अवधि का वेतन हवाला और FEMA नियमों के अंतर्गत विवादित हो सकता है।


नतीजतन, डॉ. सिन्हा अब बिना वीजा और बिना आई-कार्ड के लीबिया में फंसे हैं, जो वहां रहना भी अवैध बनाता है और देश छोड़ना भी कठिन। उनका लगभग 1.5 करोड़ रुपये बकाया वेतन भी अटका हुआ है।




मानवाधिकार आयोग में दायर याचिका

अधिवक्ता एस.के. झा ने कहा कि प्रोफेसर सिन्हा के मामले में सरकार की गंभीरता नहीं दिख रही। उनके मुताबिक:

• विशेष परिस्थितियों में पूर्व-तिथि से वीजा जारी करने का प्रावधान है,

• लेकिन इसमें भारतीय दूतावास की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है,

• जबकि दूतावास की “सुस्ती” के कारण मामला आज तक लंबित है।


झा के अनुसार यह स्थिति मानवाधिकारों का उल्लंघन है और सरकार को अब तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।




लीबिया का भी सहयोग, पर दूतावास की चुप्पी

सूत्रों के मुताबिक:

लीबिया के उप शिक्षा मंत्री ने पहल की और

अलमरगिब विश्वविद्यालय ने भी वेतन ट्रांसफर के लिए सहमति जताई है।


फिर भी भारतीय दूतावास की धीमी प्रक्रिया के चलते डॉ. सिन्हा को न वीजा मिल रहा है, न एग्जिट परमिट।




प्रोफेसर की गुहार – “वीजा मिल जाए, बाकी पैसा बाद में ले लूंगा”

खुम्स (त्रिपोली से 80 किमी दूर) में फंसे डॉ. सिन्हा बार-बार भारतीय और बिहार सरकार से अपील कर रहे हैं:

> “मुझे सिर्फ लीगल एग्जिट वीजा और सहायक प्रोफेसर होने का प्रमाणपत्र दिला दें।
मैं पैसा बाद में ले लूंगा। बस घर लौटना चाहता हूँ।”






अब क्या?

मामला मानवाधिकार आयोग तक पहुंच चुका है। ऐसे में केंद्र सरकार और राज्य सरकार पर अब डॉ. सिन्हा की सुरक्षित वतन वापसी सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है।

अधिवक्ता एस.के. झा का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के अनुसार,
भारतीय नागरिक की सुरक्षा और वापसी सुनिश्चित करना सरकार का दायित्व है,
और प्रो. सिन्हा को हर हाल में सुरक्षित भारत लाया जाना चाहिए।