सीढ़ी घाट/बूढ़ी गंडक नदी, 01 अप्रैल 2025: लोक आस्था और प्रकृति पूजन का प्रतीक चैती छठ पर्व आज से शुरू हो गया है। चार दिनों तक चलने वाले इस महाअनुष्ठान का पहला दिन ‘नहाय-खाय’ के साथ श्रद्धा और उत्साह के माहौल में संपन्न हुआ। अहले सुबह से ही बूढ़ी गंडक नदी के घाटों पर छठ व्रतियों और श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी, जहां स्नान, ध्यान और पूजन के बाद पवित्र जल लेकर लोग अपने घरों को लौटे। यह पर्व न केवल आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और स्वच्छता का संदेश भी देता है।
आज के दिन छठ व्रतियों ने नदी में स्नान के बाद घर लौटकर पहला प्रसाद ग्रहण किया, जिसमें अरवा चावल, चने की दाल, लौकी की सब्जी, आंवले की चटनी और सेंधा नमक से तैयार व्यंजन शामिल थे। यह प्रसाद न सिर्फ सात्विकता का प्रतीक है, बल्कि वैदिक मान्यताओं के अनुसार शरीर को निरोग और ऊर्जावान रखने में भी सहायक माना जाता है। इस अनुष्ठान के साथ व्रतियों ने अगले चार दिनों के लिए संकल्प लिया, जो कठिन तप और समर्पण का अनुपम उदाहरण है।
प्रकृति और परंपरा का अनूठा संगम
चैती छठ का यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति सम्मान और अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव को भी दर्शाता है। एक महिला व्रती ने बताया, “यह व्रत हम अपने परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए करते हैं। चाहे दुनिया कितनी भी आधुनिक हो जाए, हमारी परंपराएं हमें हमारी पहचान से जोड़े रखती हैं।” इस पर्व की एक खासियत यह भी है कि इसमें स्वच्छता पर विशेष जोर दिया जाता है, जो इसे पर्यावरण संरक्षण से भी जोड़ता है।
आगे की तैयारियां और अनुष्ठान
पर्व के दूसरे दिन यानी बुधवार को ‘खरना’ होगा, जिसमें प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे के निर्जला उपवास की शुरुआत करेंगी। तीसरे दिन गुरुवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाएगा, जबकि चौथे और अंतिम दिन शुक्रवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के साथ यह पर्व संपन्न होगा। घाटों पर तैयारियां जोरों पर हैं और श्रद्धालुओं में उत्साह चरम पर है।
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होने वाला यह पर्व भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यह अनुष्ठान न केवल उनके परिवार के कष्टों का निवारण करता है, बल्कि उन्हें प्रकृति और सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर भी देता है। आज के दिन से शुरू हुआ यह उत्सव अगले चार दिनों तक आस्था, एकता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता रहेगा।