यूपी में राज्य सरकार के आदेश के बाद हर धार्मिक स्थल से लाउडस्पीकर पर रोक लगा दी गई. हर धर्म स्थल पर लगे लाउडस्पीकर को उतारा जा रहा है. इस आदेश का पालन काफी सख्ती से किया जा रहा है. वैसे धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर के जरिए तेज आवाज में किए जाने वाले प्रसारण की बातें पहले भी विवाद का विषय बनती रही हैं.
लाउडस्पीकर के बजने और इसकी आवाज को लेकर ग्रीन ट्रिब्यूनल से लेकर शासन-प्रशासन के जरिए पहले भी दिशानिर्देश जारी होते रहे हैं. लेकिन पहले कभी इसका पालन नहीं हो पाया है. हालांकि ये बात सही है कि जब लाउडस्पीकर का आविष्कार नहीं हुआ था तब धार्मिक स्थलों पर धार्मिक क्रियाकलापों के लिए इसकी जरूरत भी महसूस नहीं की गई.
वैसे ये कौतुहल अपनी जगह लाजिमी है कि लाउडस्पीकर का आविष्कार किसने किया. फिर दुनिया की वो कौन सी मस्जिद थी, जहां पहली बार अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल हुआ. तब क्या तर्क दिए गए.
कब हुआ लाउडस्पीकर का आविष्कार
लाउडस्पीकर का आविष्कार 20वीं सदी की शुरुआत में हुआ था. इस आविष्कार के बाद लाउडस्पीकर्स को मस्जिदों तक पहुंचने में बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगा. हालांकि इसके इस्तेमाल को शुरू में विरोध की भी स्थिति थी. कुछ लोग ये मानते थे ईश्वर और अल्लाह की इबारत में इन नई मशीनी चीजों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.
किन मस्जिद में पहली बार हुआ इस्तेमाल
ब्रायन विंटर्स की किताब The Bishop, the Mullah, and the Smartphone: The Journey of Two Religions into the Digital Age के मुताबिक दुनिया में पहली बार अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सिंगापुर की सुल्तान मस्जिद में किया गया था. ये करीब 1936 की बात है. तब वहां के अखबारों में खबरें छपी थीं कि लाउडस्पीकर से अजान की आवाज 1 मील तक जा सकेगी.
तब इसका विरोध क्यों हुआ था
तब इस नई तकनीक के इस्तेमाल का विरोध मस्जिद में नमाज पढ़ने वाले ही कुछ लोगों ने किया था. लेकिन लाउडस्पीकर के पक्ष में ये बात भी कही गई कि शहर में शोर बढ़ रहा है. ऐसे में अजान की आवाज ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाती, इसलिए लाउडस्पीकर उपयोगी रहेगा. यानि तब भी कुछ लोगों ने इसे बेहतर कदम माना तो कुछ ने विरोध किया.
तुर्की और मोरक्को में अब भी लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं होता
लाउडस्पीकर पर अजान दिए जाने के नियम अलग-अलग देशों में अलग-अलग हैं. जैसे तुर्की और मोरक्को जैसे देशों में शायद ही कोई मस्जिद हो जहां लाउडस्पीकर से अजान दी जाती हो. जबकि नीदरलैंड में महज 07-08 प्रतिशत मस्जिदों में लाउडस्पीकर के जरिए अजान दी जाती है.

वो सुल्तान मस्जिद जहां पहली बार लाउडस्पीकर से आवाज गूंजी
सुल्तान मस्जिद या मस्जिद सुल्तान सिंगापुर के रोशोर जिले में मौजूद है. इसका नाम सुल्तान हुसैन शाह के नाम पर रखा गया था. 1975 में इस मस्जिद को देश का राष्ट्रीय स्मारक भी घोषित किया गया था. इस मस्जिद को बनाने की शुरुआत तो 19वीं सदी में ही की जा चुकी थी लेकिन इसका निर्माण कार्य 1932 में पूरा हुआ था. निर्माण के बाद मस्जिद में छोटे-मोटे जीर्णोद्धार के अलावा कोई बड़ा काम नहीं कराया गया है. ये कला और स्थापत्य का शानदार नमूना है.
लाउडस्पीकर से कई देशों में अजान की सीमा
मुस्लिम हालांकि पूरी दुनिया में हैं लेकिन नीदरलैंड्स, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रिया, नार्वे और बेल्जियम में लाउडस्पीकर पर अजान तो होती है लेकिन इसकी आवाज तय है कि वो कितने डेसीबल तक रह सकती है. लेकिन इन्हीं देशों में कुछ शहरों ने स्वतंत्र तौर पर इन पर प्रतिबंध लगाया हुआ है. इसमें नाइजीरिया का शहर लाओस और अमेरिका का मिशिगन राज्य भी है, जहां इस पर प्रतिबंध है.
इजरायल में भी आराम के समय में लाउडस्पीकर धार्मिक स्थलों पर नहीं बजाया जा सकता है.
ब्रिटेन में लंदन में आठ मस्जिदों को लाउडस्पीकर इस्तेमाल की अनुमति अजान के दौरान है, वो भी रमजान में. लेकिन बाद में इस अनुमति को कोर्ट के एक फैसले के बाद 19 मस्जिदों तक बढ़ा दिया गया. हालांकि इसका जबरदस्त विरोध भी है.
सऊदी अरब में कड़े नियम
सऊदी अरब में अजान के लिए मस्जिदों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के कड़े नियम हैं. अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल हो सकता है लेकिन एक तय आवाज में. इसके अलावा इसका और प्रयोग अगर हुआ तो वो प्रतिबंधित है. अगर किसी ने इसका नियम के खिलाफ इस्तेमाल किया तो पेनाल्टी लगाई जाती है.

लाउडस्पीकर पर विवाद
हाल के सालों में अजान को लेकर सबसे तीखा विरोध जर्मनी में देखने को मिला था. दरअसल यहां की कोलोन सेंट्रल मस्जिद के कंस्ट्रक्शन के दौरान ही आस-पास के लोगों ने अजान को लेकर शिकायत की थी. लोगों ने कहा कि मस्जिद के निर्माण के बाद यहां अजान दी जाएगी जिससे दिक्कतें होंगी. बाद में प्रशासन ने मस्जिद बनाने की छूट इसी बात पर दी कि इसमें लाउडस्पीकर के जरिए अजान नहीं दी जाएगी.
इंडोनेशिया में भी होता रहा है विरोध
दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिमों की जनसंख्या वाले देश इंडोनेशिया में जब एक महिला ने अजान के दौरान लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर शिकायत की थी. तो उसे ईशनिंदा में 18 महीने की सजा भुगतनी पड़ी थी. गुस्साई भीड़ ने 14 बौद्ध मंदिरों में आग लगा दी थी. हालांकि बाद में सरकार ने मस्जिदों में अजान के इस्तेमाल पर दिशानिर्देश जारी किए.
क्या बनाए गए थे नियम
1998 में कोलकाता उच्च न्यायालय ने नियम दिया था 10 डेसिबिल से ज्यादा की आवाज के साथ कोई भी व्यक्ति या संस्था बगैर अनुमति के लाउडस्पीकर से ध्वनि प्रदूषण नहीं कर सकता। इसके बाद सन 2000 में ‘चर्च ऑफ गॉड बनाम केकेआर मैजिस्टिक’ के तहत एक फैसला आया, जिसमें रात को 10 बजे के बाद से लेकर सुबह 6 बजे तक कोई भी ध्वनि प्रदूषण न करने का आदेश दिया गया था.
इसके अलावा विशेष परिस्थितियों में सेक्शन 5 के तहत जिम्मेदार अधिकारी से अनुमति लेने के बाद ही रात 10 बजे से रात को 12 बजे तक एक तय डेसिबिल की अनुमति दी जा सकती है. सिर्फ यही दो नियम नहीं, बल्कि इसके अलावा भी और कई अलग-अलग उच्च न्यायालय के आदेश आए हैं, जिसके तहत स्पष्ट रूप से आदेश दिया गया है कि धार्मिक स्थलों या कार्यक्रम से बगैर अनुमति के लाउडस्पीकर से आवाज नहीं आनी चाहिए.
Source : News18