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मुजफ्फरपुर, बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन सहित पीजी विभागों में शौचालय साफ कराने के लिए पैसे नहीं है. कई विभागों के साथ ही हॉस्टल में भी पेयजल की समस्या बनी हुई है. विद्यार्थियों की शिकायत के बाद भी विवि के स्तर से कोई पहल नहीं हो सकी है. दूसरी ओर नैक मूल्यांकन के बाद रूसा से पहली किस्त में मिले 10 करोड़ रुपये में चार करोड़ छह साल में भी खर्च नहीं हो सके हैं. वर्ष 2015 में विश्वविद्यालय का मूल्यांकन हुआ था, जिसमें बी ग्रेड मिला. मूल्यांकन के बाद 2016 में रूसा ने 10 करोड़ रुपये की पहली किस्त दी.

निर्माण और मरम्मत पर करीब छह करोड़ रुपये खर्च किये गये

निर्माण और मरम्मत पर करीब छह करोड़ रुपये खर्च किये गये. हालांकि इस साल मई में निर्माणाधीन कार्यों का निरीक्षण करने रूसा की टीम विश्वविद्यालय आयी, तो हॉस्टल में चल रहे कार्य की गुणवत्ता पर नाराजगी व्यक्त की. चार करोड़ रुपये से अधिक के कार्यों का प्रस्ताव करीब सालभर से पेंडिंग है, जिसमें विश्वविद्यालय का गेस्ट हाउस भी शामिल है. पीजी विभागों में लैब दुरुस्त कराने के साथ ही नये भवन भी बनवाने हैं. पहली किस्त खर्च कर विश्वविद्यालय से उपयोगिता दी जायेगी, तो रूसा से दूसरी किस्त के 10 करोड़ रुपये मिलेंगे.

महिला शौचालय का दरवाजा टूटा, फर्श पर पसरी है गंदगी

प्रशासनिक भवन में रोजाना सैकड़ों छात्राएं आती हैं. फर्स्ट फ्लोर पर केवल महिलाओं के लिए एक शौचालय है. उसका भी दरवाजा टूटा हुआ है. स्थिति यह है कि किसी को टॉयलेट जाना हो, तो दरवाजे पर परिजन या फ्रेंड्स को खड़ा करके जाती है. यही नहीं, कई अधिकारियों के चेंबर में बने टॉयलेट की स्थिति भी बदतर है.

पीजी विभागों में पीने के पानी भी उपलब्ध नहीं

कई पीजी विभागों में पेयजल का भी संकट है. वाटर प्यूरीफायर लगा है, लेकिन खराब होने के बाद मरम्मत नहीं हो सकी. गणित विभाग में टॉयलेट से बदबू आ रही है. छात्राओं ने बताया कि महीने में एकाध बार किसी तरह सफाई हो जाती है. पानी के लिए लगी मशीन खराब हो चुकी है. आर्ट्स ब्लॉक में भी कई विभागों का टॉयलेट बदहाल है.

हॉस्टल में नहीं सुधरी व्यवस्था

पीजी ब्वॉयज हॉस्टल में भी व्यवस्था बदहाल है. जंगल-झाड़ उग गये हैं, जबकि शौचालयों में गंदगी पसरी है. पीने के लिए पानी का भी संकट है. छात्रों का कहना है कि कई बार अधिकारियों से इसकी शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कभी सुनवाई नहीं होती. विश्वविद्यालय के परीक्षा भवन में भी पेयजल के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.

पिछले सत्र में करना पड़ा था सरेंडर

वित्तीय वर्ष 2021-22 में करीब साढ़े चार करोड़ रुपये विश्वविद्यालय को सरेंडर करना पड़ा था, क्योंकि कार्य के लिए कोई प्रस्ताव नहीं बन सका. इसके बाद यूजीसी ने विवि के अनुरोध पर वह राशि रिलीज कर दी. वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह राशि खर्च की जानी थी, लेकिन अब तक प्रस्तावित कार्यों की नींव भी नहीं पड़ सकी है.

इनपुट : प्रभात खबर

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