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जहां उम्मीद न हो, वहां उम्मीद जगाने वाले, जहां इंसान हार मानकर बैठ गया हो, वहां हौसला जगाने वाले हिंदी के मशहूर कवि दुष्यंत कुमार की एक मशहूर कविता है. कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों. इस पंक्ति को चरितार्थ कर दिखाया है बिहार के सहरसा के लाल कमलेश ने. आज जिले के नवहट्टा प्रखंड के सतौर पंचायत के बरवाही वार्ड नंबर-12 में खुशियों का माहौल है. लोग एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं. वजह बहुत ही प्यारा है. यहां के निवासी चंद्रशेखर यादव के पुत्र कमलेश कुमार जज बन गए हैं. कमलेश के जज बनने कि कहानी हूबहू किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से मिलती जुलती है.

पिता दिल्ली में लगाते थे छोले-भटूरे का ठेला

बता दें कि सहरसा और आसपास के जिले में हर साल कोसी नदी कहर ढाती है. कोसी के कहर से परेशान होकर हजारों लोग पलायन करते हैं. कमलेश के पिता भी कोसी के कहर के चलते ही पलायन कर देश की राजधानी दिल्ली में नई जिंदगी को बसाने के लिए चले गए थे. यहां कमलेश के पिता ने सड़क किनारे छोले-भटूरे का दुकान लगाना शुरू किया और झुग्गी-झोपड़ी में रह कर सवेरा का इंतजार करने लगे. दिल्ली में छोला-भटूरा लगाकर कमलेश के पिता ने एक बेहद खास काम किया. उन्होंने कमलेश को जी-जान झोंक कर पढ़ाया. जिसके बाद कमलेश ने कमाल कर जिले के साथ-साथ पूरे बिहार का नाम रोशन कर दिया.

पिता को पुलिस ने जड़ा थप्पार…जज बनने की ठानी

कमलेश कि कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है. जब कमलेश के पिता चंद्रशेखर यादव दिल्ली में सड़क किनारे छोला-भटूरा का दुकान लगाते थे. तब उन्हीं दिनों एक पुलिस वाले ने चंद्रशेखर यादव को उनके बेटे के सामने एक थप्पर जड़ दिया. जिसके बाद रोते हुए कमलेश ने अपने पिता से पूछा कि पुलिस वाले किससे डरते हैं. जिसपर चंद्रशेखर यादव ने कमलेश को समझाया कि पुलिस वाले जज से डरते हैं. इसके बाद कमलेश ने जज बनने की ठान ली और कड़ी मेहनत करके इस जज बनकर ही दम लिया.

राह नहीं थी आसान…मेहनत से पायी सफलता

एक औसत विद्यार्थी होने के बावजूद कमलेश ने इसके लिए जमकर तैयारी करना शुरू किया. उन्होंने अंग्रेजी भी अच्छे से सीख ली थी. कमलेश के गांव में आज खुशी की लहर है. घरवालों ने बताया कि जज बनने की राह इतनी आसान नहीं थी. काफी मेहनत करके कमलेश ने लॉ की पढ़ाई की और जज बनने की तैयारी शुरू की. एक दो बार निराश भी होना पड़ा, लेकिन अंत में कमलेश को यह कामयाबी मिल गई.

झुग्गी-झोपड़ी में रहकर गुजारते थे जिंदगी

न्यायिक सेवा में 64वीं रैंक लाकर जज बनने वाले कमलेश के इस सफलता से उनके पैतृक गांव में खुशी की लहर है. अपनी सफलता के बारे में कमलेश ने एक निजी चैनल से बात करते हुए बताया कि मेरे पिता मेरे पिता बेहद निर्धन परिवार से आते हैं. आजीविका के लिए दिल्ली गए. यहां एक झुग्गी-झोपड़ी में रहकर जिंदगी गुजारते थे. लेकिन इस बीच सरकार ने लाल किले के पीछे झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का गाइडलाइन जारी किया. तमाम अवैध झुग्गी झोपड़ी ध्वस्त कर दिए गए. मुझे उस समय काफी गुस्सा आया मगर मैं कुछ नहीं कर सकता था. एक दिन पिता ने मुझे कहा कि यह पुलिस वाले जज से काफी डरते हैं. यही बात मेरे दिलों दिमाग में बैठ गई और मैंने जज बनने का फैसला किया.

असफलता से नहीं मानी हार

कमलेश 2017 में UP Judiciary का एग्जाम क्लियर न कर पाए थे. इसके बाद उन्होंने Bihar Judiciary की तैयारी शुरू की लेकिन पहले प्रयास में यहां भी सफलता उनके हाथ न लगी. इसके बाद कोविड के कारण उनके करीब 3 साल बर्बाद हो गए. इतना सब होने के बावजूद कमलेश ने न तो उस हादसे को भुलाया और न हार मानी. उन्होंने अपनी तैयारी रुकने नहीं दी. उनकी इसी लग्न और मेहनत का ये परिणाम रहा कि आखिरकार 2022 में कमलेश 31st Bihar Judiciary Examination में 64वीं रैंक प्राप्त कर गए और उनका सलेक्शन हो गया.

इनपुट : प्रभात खबर

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